आज शिप्रा बहुत उदास थी।कितने ही दिन हुए उसे किशन से मिले।यूँ कहने को तो वो पिछले दो वर्षों से नहीं मिली थी किशन से,मग़र फ़ोन और पत्रों का सिलसिला निर्बाध चल ही रहा था।
कॉलेज के समय की दोस्ती नौकरी तक चली आ रही थी।
शिप्रा की रुचि बचपन से ही उपन्यास पढ़ने में थी।वो अक्सर कॉलेज की लाइब्रेरी भी उपन्यास लेने ही जाया करती थी।कहने को तो वो विज्ञान की स्नातक थी मगर उसकी रुचि साहित्य में अधिक थी।एक दिन वह लाइब्रेरी से अमृता प्रीतम की 'एक थी अनिता' लायी थी। आदतन पहला और फिर अंतिम पन्ना पढ़ने लगी। अंतिम पन्ने के अंत में उसे हस्तलिखित कागज़ मिला।उसपर एक उपन्यास का पूरा प्रारूप लिखा था।पात्रों के नाम, कार्यकलाप, शुरुआत और अंत,पृष्ठों की संख्या भी लिखी थी। नहीं था तो बस उपन्यास और लेखक का नाम।पाँच दिन बाद जब शिप्रा किताब लौटने लाइब्रेरी गयी तो लाइब्रेरियन ने उससे पूछा,तुम्हें इस किताब में कोई कागज़ मिला था क्या? शिप्रा ने कहा मिला तो था पर हॉस्टल में ही छूट गया।तभी एक भरे पूरे शरीर का, श्वेत वर्ण, चौड़े माथे वाला, सलीकेदार वस्त्र और वचन से सुसज्जित युवक बोल पड़ा। मेरा नाम किशन है, वो मेरा ही कागज़ है जो ग़लती से किताब में रह गया था।क्या आप मुझे अभी दे सकती हैं?
शिप्रा ने कहा, चलिये, होस्टल में है, मैं अभी आपको दे देती हूँ।बातचीत और दोस्ती कब प्यार में तब्दील हुई दोनों को ही पता नहीं चला।शिप्रा बहुत ही अट्रैक्टिव थी, इसलिए यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि किशन भी वही खिंचाव महसूस किया था जो शिप्रा ने महसूस किया था।किशन इंजीनियरिंग कर रहा था और कैंपस सिलेक्शन में ही उसे लंदन में पोस्टिंग मिली थी।शिप्रा ने उसे बहुत रोकना चाहा था मगर किशन ने शिप्रा से तीन वर्ष माँग ही लिए थे।शिप्रा भी स्नातकोत्तर के बाद डॉक्टरेट करने अमेरिका चली गयी थी।
मिलों की ये दूरियाँ कभी दिल की दूरियाँ नहीं बनी और दोनों का प्रेम दोनों की ही ऊर्जा बन दोनों को ही उनके कर्मपथ पर अग्रसर करता रहा।
मगर कुछ दिनों से किशन का फ़ोन, मैसेज, लैटर सभी कुछ अनियमित हो गया था। शिप्रा ने बातों बातों में किशन से शिकायत भी की थी।किशन हर बार ही कोई बहाना बना कर शिप्रा को बहला देता था।
चार दिन हुए किशन अब शिप्रा के फ़ोन मुश्किल से उठाता था और बहुत कम बात कर रख भी देता था। शिप्रा यह बदलाव समझ ही नहीं पायी थी।
आज उसने भी निश्चय कर लिया था कि वो अब किशन को कोई मैसेज या कॉल नहीं करेगी जब तक अब किशन की तरफ से पहल नहीं होगी।
शिप्रा डॉक्टरेट की डिग्री जब ले रही थी तो भी उसकी आँखें भीड़ में किशन को ढूँढ रहीं थी, कान उसकी ही आवाज़ का इंतज़ार कर रहे थे।मगर अपनी ही ली क़सम में बँधी शिप्रा ने किशन को कोई मैसेज या कॉल नहीं किया और पढ़ाई पूरी कर भारत आकर कॉलेज की नौकरी जॉइन कर ली।
मैडम, आपसे मिलने कोई आये हैं, कहते हैं आपके शह्र से आये हैं।डीन के रूम में हैं,आप क्लास के बाद वहीं मिल लीजिएगा।पियून बोल कर चला गया था। शिप्रा मन ही मन ख़ुश हुई कि पापा को बिटिया की याद आयी है शायद।
सर मे आई कम इन?
यस प्लीज़।देखो शिप्रा कौन आया है?
तुम,यहाँ, यूँ अचानक? याद आ गयी मेरी?कहाँ थे अब तक? कोई फ़ोन, कोई मैसेज नहीं किया? ज़िंदा हूँ कि मर गयी हूँ ,ये भी नहीं पूछे? किशन यू आर इम्पॉसिबल।
शिप्रा एक साँस में बोलती ही गयी और किशन बस मुस्कुराता रहा शिप्रा को देखकर।
तभी शिप्रा को ख़याल आया कि वो डीन सर के रूम में है।
सॉरी सर, आई एम एक्सट्रेमली सॉरी।
किस बात के लिए शिप्रा, दिल तो आख़िर दिल ही है।और कमरा हँसी से खिलखिला उठा।
शुचि 'भवि'
भिलाई, छत्तीसगढ़
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