संजोग वश एक चित्र ऐसा
दो दिल आकर खुब मिले
कान्हा की नजर उठी ऊपर
डाली पर भी दो फुल खिले
मिले अचानक थे दोनो
आकर आपस मे लिपट गये
हाय राधा हाय कान्ह बोले
फिर एक दुसरे से चिपंट गये
एक हाथ मे मटकी पकडी
एक से राधा को जकड लिया
राधा भी कहां चूक रही थी
उसने बांसुरी को पकड लिया
प्रेम चिगांरी भडक गई थी
बस मन्त्र मूग्ध से हो गये थे
सासो से सासें बोल रही थी
वे एक दुसरे मे खो गये थै
कान्हा को प्रिया पाने से
हो कान्हा भी खामोश रहा
नेत्र बंद कर राधा चिपकी
न उसको कुछ भी होश रहा
चित्रकार कमाल किया ये
यह चित्र गजब बनाता है
जाखड़ चित्र यही बोल रहा
नही प्यार अलग हो पाता है
राधे-- राधे
कान्हा --कान्हा
सदा खुश रहो
अशोक कुमार जाखड़ "निस्वार्थी"
ढ़ाणा, साल्हावास,झज्जर, हरियाणा
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