एक दिन आपका में -आशा जाकड़


     कालम 2   "लघुकथा - आडम्बर "

"अजी सुनिए ,मम्मी की फोटो  बड़ी करवा दीजिए  ,मुझे  ड्राइंग  रूम में  लगाना है और हाँ चंदन की बड़ी माला भी ले आना।" "हाँ - हाँ  करवा दूंगा  और माला भी ले आऊँगा।"कहकर दिलीप सीढियां  उतरने लगा और सोचने लगा कि  जबतक माँ जीवित रही तब तक कभी माँ से ढंग से बातचीत नहीं  की और शादी के  एक साल बाद ही मुझे इसके रूखे व्यवहार के कारण माँ  से  अलग होना पड़ा। बेटा होने पर माँ  डेढ महीने हमारे पास रही।  माँ ने खूब इसका ध्यान  रखा फिर भी छोटी- छोटी बातों  पर गुस्सा  हो जाती। माँ  को अच्छा  नहीं लगता  और माँ  चली गई ।
कभी - कभी  माँ  बेटे को  देखने  घर आ जाती । मेरे कहने पर रुक भी जाती तो  माँ के  सामने किसी न किसी  बात को लेकर हंगामा  खड़ा कर देती ।  माँ विनेश को  बहुत प्यार करती थी ।मैं जब भी माँ से मिलने जाता तो माँ विनेश के बारे में ही पूछती तो कभी - कभी बेटे विनेश को  फिर मैं  माँ के पास ही छोड़ आता एक  दो दिन के लिए।
बेटा  जब छै साल का था  ,तब माँ  को कैंसर  हो गया।माँ  तीन साल तक  कैंसर से जूझती रही  लेकिन न खुद  गयी और न विनेश को माँ के पास जाने दिया । मैं  ही अकेला माँ की सेवा  करता रहा।
माँ के जाने  पर दो आंसू  भी नहीं  गिराए और आज सहेलियों के आने पर माँ की फोटो  पर माला  चढाकर दिखावा  करना ।
वाह रे आडम्बर।

आशा जाकड़ ( लेखिका )
पता-747,सांईकृपा कोलोनी
होटल रेडिसन के पास
 कुशाभाऊ ठाकरे मार्ग
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