हास्य
गमछे की महागाथा,तुमको क्या बतलाएं
घर-घर में चर्चा बना,क्या परिचर्चा सुनाएं
मोदी जी ने डाल गले में,दिया खास बनाए
घर के भीतर पड़ा हुआ, रहा मुंह लटकाए
इस गमछे को कम न समझो
ये तो है, बड़े काम की चीज
झटपट मुहँ पर तुम बांध लो
जब-जब आए, खाँसी छींक
कमर खुजाओ,चाहे नहाओ
या बांध गाँठ,भर लाओ चीज
मक्खी-मच्छर जो चाहे भगाओ
बांध लो सर पे,जब सताए पीर
गुटखा खाने वालों के तो ये
बड़े ही काम है आए
फेंक पिचकारी चलें सड़क पे
शान से, मुहँ पोंछते जाएं
मिले जानवर कोई रस्ते में
काम छड़ी की तरह आए
जरूरत पड़ने पर इससे
बस दे दो,दो चार जमाए
धूप-ताप में भी भईया
बड़े काम है ये आए
बना लो चाहे इसे पंखा
या लो पसीना सुखाए
लगा चश्मा डाल गले में,
जरा दो गर्दन झटकाए
खड़ी दूर छत से गौरी
बस मन्द-मन्द मुस्काए
कहे गमछा मोदी जी से
मेरे भाग दिये जगाए
बुरे दिन बीते रे भईया
अब अच्छे दिन हैं आए
---©किरण बाला
(चण्डीगढ़)
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