घर का सुख अनमोल है
इसका नहीं कोई मोल
अपने घर में रहिये
बेसक पीटते रहिये ढोल
अपनी मर्जी से खाना
अपनी मर्जी से रहना
सोते रहिये शाम सुबह
जागते रहिये दिन रात
कोई कुछ न बोल सके
दिन भर कीजिये बात
अपना घर हो झोपड़ी जैसा
मिले महलों सा आनंद
थोड़ा भी खा पीकर
रहिये सदा मस्त मलंद
भूखा भी सो जाइये
जान सके ना कोय
बिन बाती बिन तेल के
अपनी दीवाली होय
"दीनेश"अपनी दीवाली होय
दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
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