घर मे छुपे बैठे कुछ अपने ही मक्कार हैं
समझ नहीं आपदा की बुद्धि से बेकार हैं
करते दीन की बातें,मन मे छुरियां रखते
थूक कर इधर-उधर करते दुश्मनी वार हैं
क्या बचा लीजिएगा, धर्म के ठेकेदारों को
जो बनकर हैं बैठे,देश के असली गद्दार हैं
लजाया मजहब और खुदाई को भी नासा
जो शर्म की सरहद को करते तार-तार हैं
खौफ़जदा इंसान आज,एसे ही जयचंदो से
भेजिए जंगल,जो जानवरो से भी बेकार हैं
बसी ज़हन मे नफरत,इंसा के गुनहगार बने
और खून भी गन्दा औकात दिखाने लाचार हैं
इन्दु,उत्तर प्रदेश
0 टिप्पणियाँ