प्रिय रीता.. कैसी हो? आजकल क्या कर रही हो? समय कैसे व्यतित हो रहा है?मैं मन ही मन सोचने लगी.." तुमसे क्या मतलब? मैं कुछ भी करूँ, फिर एक मुस्कान के साथ मैंने खुद के भीतर अंतरात्मा से पूछे गए सवालों पर मनन किया और सोचा कि,.." हाँ सच ही तो है कि मेरा हालचाल पूछा और समय कैसे कट रहा है? कुशलक्षेम पूछना कोई खराब बात थोडी है, "क्यूँकि प्रश्न मेरी अंतरात्मा से पूछे गए थे और जवाब भी खुद को ही देना था सो मैंने सभी बातों का जवाब एक अंतर्देशीय पत्र कार्ड पर लिखकर अपने पते पर पोस्ट कर दिया" जिसमें मैंने बताया कि मैं स्वस्थ हूँ और अपने जीवन का कुछ लक्ष्य है उसे पूरा करने पर चिंतन कर रही हूँ तुम दोबारा मुझे परेशान करके मेरे लक्ष्य के विषय में पूछोगे तो लो पढो़..मैंने अपने कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य को क्रम से़ लिखकर.."लाल डिब्बा" (लेटरबाॅक्स) में अपने ऐड्रेस पर पोस्ट कर दिया जो कि, "मुझे एक-दो दिन बाद मिल गया।
उस लैटर को मैं हमेशा अपने सिरहाने रखकर सोती हूँ.. और सुबह उठते ही मैं उस खत को रोजा़न पढ लेती हूँ जो मुझे हमेशा मेरे लक्ष्य को याद दिलाता है,"और मैं जुट जाती हूँ उन सभी सपनों को साकार करने जो मैंने संजोये थे और वो मेरे जीवन का उद्देश्य भी है।"
धन्यवाद
रीता जयहिन्द
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