जयश्री का -सपना

सपना कार्यक्रम के तहत


कितना मुझे तरसाते हो 
छलिया हो जादूगर तुम
मेरी निदिंया चुराते हो
सपनों में आ कर तुम।


यादों में तेरी खोई रहूँ
विरह की घड़ियाँ कठिन
मैं तड़प रही दिन-रात
जैसे जल बिन मीन।


दिल दिया है तुमको
चाहा है जान से ज्यादा
आबाद रहो तुम हमेशा
है मेरे दिल की दुआ।


जयश्री शर्मा "ज्योति"
जोरहाट (असम)




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