पुस्तक दिवस पर विशेष
क्या तुमने देखा है उसे,
उड़ते हुए,
बिल्कुल किसी पंछी की भांति,
उन्मुक्त गगन में?
मैंने देखा है उसे,
विचारों के उन्मुक्त गगन में,
बिना पंख के,
फैलाकर अपनी बाहों को।
जैसे कहती हो,
सारा संसार मेरे बिन,
कुछ भी नहीं,
मेरे है हर एक,
रोम रूपी शब्द में,
कई जीवन की कहानियां।
जी लेती हूँ उस पल को
जब मुझे कोई पढ़ता है
किताब हूँ मैं
जैसे जीवन का आधार
अमोघ अग्रवाल'इंतज़ार'
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