पीले पीले सुमन खिले हैं
पीतांबर ओढ़े सरसों
झूम रही है
हरी घास धरती को चूम रही है ।
फूलों में पावन पराग है
कलियों में मृदु मुस्कान
शि शिर गया है भाग
मौसम ने ली फिर से अंगड़ाई ।
है पलाश की इस लाली में
नव जीवन का उल्लास ।
कू-कू कर कूक रही
वृक्षों पर कोयल काली
वन -उपवन में हरियाली है ।
कण-कण मेंउल्लास जगा
होठों पर मधुर मुस्कान
मकरंद प्रेम का लाया है
हरियाली के शुभ -मंडप से।
पत्ता -पत्ता हरषाया है।
सुरभित है घर -आंगन
फाल्गुन के टैसू फूलों से।
इधर आम भी बोराय रहा ।
भौरें भी गुंजायमान हो रहे।
गेहूं- चना की बाली देख ।
प्रकृति आनंदित हो रही
कृषक -समाज है प्रफुल्लित
अपनी बगिया की हरियाली देख ।
क्योंकि -
प्रकृति की शक्ति और छटा
दोनों निराली है ।
-अंजू पुरवार
मीरापुर प्रयागराज
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