सुख व प्रगति का आधार है आदर्श परिवार ।गृहस्थी के निर्वाह हेतु किया जाने वाला प्रयत्न किसी तितीक्षा से कम नहीं।परिवार का भार वहन करना, सुविधा के साधन जुटाना,आमदनी का नियोजन करना एक दुस्तर तपस्या है।
वर्तमान परिस्थिति ही इसका ज्वलंत उदाहरण है।लाॅकडाउन के चलते पूरे परिवार के सदस्य घर में है।अब चौबीस घंटे की व्यवस्था गृहिणी को सम्हालनी ही है।एटीएम से पैसा निकालने का डर तब युक्ति से हर महीने की गई जमा राशि वह निकाल कर घर खर्च में सहयोग दे रही हैं।यह सत्य हकीगत है।जब कि वह चुपके से पैसा निकाल कर कहती है आप कही बाहर न जाओ ये मेरे पैसो से चला लेंगे।
जब कोई महिला अपनी मानसिक गुलामी से उपर उठकर कुछ करती है तब शक्ति के सभी दैवी गुण हम एक नारी में देख सकते हैं।जो सोचकर महिने की निश्चित आमदनी में व्यवहार कुशलता से चला भी लेती है ।वह अपनी छोटी सी जिन्दगी को खुशनूमा बना लेती हैं।इस व्यवस्था में व्यक्ति अपनी अनेक प्रवृतियों पर अंकुश लगाना सीखता है ।माँ बाप अपने पेट काट कर भी बच्चो को पढाते है।इसी त्याग से घर के वातावरण से संस्कारित पीढ़ी तैयार होती है।
घर की आमदनी कैसे बढे इसका पूरा भार गृहिणी पर नहीं होना चाहिए ।पुरूष कमाता है नारी की तब दोहरी जवाब दारी हो जाती है ।उसे घर बाहर बच्चे तथा पति का खयाल रखना होता है।ऐसे समय एक-दूसरे का सहयोग करना परिवार की स्वस्थ परम्परा होनी चाहिए ।जिसकी निर्मात्रि महिला होती है।
बीमारी मे सबकी पूछताछ करे और देखभाल, चिकित्सा, परिचर्या ,सहानुभूति व्यक्त करने के लिए तत्परता बरतें।
इस प्रकार महिला प्रथम अपने पारिवारिक संबंध सुदृढ करे। समय प्रबन्धन का ज्ञान रखे।
समय पर उचित निर्णय की शक्ति का उपयोग करे।निश्चित आय का विवेक पूर्ण बंटवारा करने की कला उसके पास है तो घर की आमदनी मे वृध्दि हो सकती ।कुछ स्वस्थ परम्परायें उसे लागू करनी होगी।
1 परिवार के आर्थिक बजट में सभी सदस्यों की भागीदारी रहे।यदि एक कमाने वाला हो तो स्वयं के साथ सभी को मितव्ययता का पाठ पढाना होगा।घर के कामकाज सबके सहयोग से कार्य पूर्ण करने होंगे ।जैसे कि आज पूरे देश के परिवार आय व्यय के हिसाब के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
2 महिला स्वयं घरेलू उद्योग से अतिरिक्त आय प्राप्त कर परिवार के छोटे बड़े सदस्यो को आगे बढाने में ऊँचा उठाने
में विशेष भूमिका निभा सकती हैं।
3 केवल आदेश न दे।सहकारिता अपना कर श्रम ही पूजा है सिध्द करे।
4 घर का वातावरण आध्यात्मिक होने से महिला को अपना कार्य करने मे सहूलियत हो सकती हैं।ऐसे समय दिनचर्या नियमित होतीहै।
5 बाजार की मंहगी चीजें,प्रतिदिन सैर-सपाटे , होटलो का खाना ,ललचाई नजरो से अडोल पड़ोस की इच्छा का मन में संग्रह करना
।ऐसा स्वभाव होने पर महिला घर की अधिक आय मेंं भी संतुष्ट नहीं हो सकती।
अतः आत्म संतोषी सदा सुखी
6 संपदा अनावश्यक मात्रा में होने पर या इच्छायें असीमित होने पर अपव्यय सूझता है।
7 जितना निर्वाह के लिए नितांत आवश्यक है उतना ही कमाया जायें ता कि बच्चो में पूर्वजो की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाने व बैठे ठाले दिन काटने की ललक न उठे।
8 घर में संवादहीनता की स्थिति न हो। महिला अपनी योजनाओ को उन्मुक्त हो समझायें क्योंकि घरकी पूरी बागडोर उसके हाथ में होती है। नारी सृष्टि निर्माण में अपनी प्रमुख भूमिका निभाती है ।यह सोच उसके स्मृति होने से घर की आमदनी को बढाना तथा महिला के लिए बड़ी बात नहीं।आज सभी शीर्ष पदो को सुशोभित करने वाली नारी अपने अस्तित्व को पहचान ले तो घर मंदिर सा बन जाता है कहना अनुचित नहीं।
अमिता मराठे
इन्दौर
मप्र
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