किताबें-मनीषा

कभी जिंदगी से जूझना
कभी अपनों की बात कहना ।
कभी अपनों से बात करना।
मन की बात भी कह जाती हैं किताबें।


कभी चिड़ियों सा 
च ह क ना ।
कभी झरनों सा बहना,
न जाने कब प्रकृति से भी नाता जोड़ जाती हैं
किताबें ।


कभी घरोदें बनाना और
कागज़ की नाव चलाना,
कभी दादी की कहानी
कभी नानी की ज़ुबानी
सुना जाती हैं किताबें।


कभी मेरी कहानी 
कभी तुम्हारी कहानी
कभी ऐसी कहानी जो 
लगे सबको अपनी सी कुछ ऐसा कह जाती हैं किताबें।


मनीषा व्यास


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