हास्य कविता
हाय रब्बा मेरी प्यारी पड़ोसन
कितनी नखरेवाली है
घर में कम टिकती है हरदम,
लगती बाहरवाली है।
हाय रब्बा मेरी प्यारी पड़ोसन....
लटक झटक कर वो है चलती
कमर में ठूंसी साड़ी है
नखरे उसके रहते हरदम
लगती कोई नाटकवाली है
हाय रब्बा मेरी प्यारी पड़ोसन....
लंबी चोटी,आंख में काजल
होठों पर हरदम लाली है
औरतों की आंख में खटके
पुरुषों को लगती प्यारी है
हाय रब्बा मेरी प्यारी पड़ोसन.....
आंख मे मटकन,कमर में झटके
नजर उसने पिया पर डाली है
भाए ना कभी मुझको वो बैरन
दिल में मेरे बस एक गाली है
हाय रब्बा मेरी प्यारी पड़ोसन
प्रियंका गौड़ जयपुर
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