माँ-अंकिता

 निःशब्द हूं तुम्हे 
          शब्दों मे नही समेट पाती


मां तेरे रूप रूह के क्या
 मैं ब्खयान करू?
तुम्हें शत-शत् नमन प्रणाम करूं 
तू गीता दर्शन वेदों में है।
अस्तित्व तेरा सत्य प्रकाशित 
सद्ग्रंथों की वाणी है ।


भयंकर अमावस्या के बादल 
जब छाए उलझन में जब जी घबराए
ममत्व छाव आंचल देती है 
दानों की लकीर मेरे गालों 
पर नजर आए ,किताबों में जब 
तुम्हारे पुराने खतों पर  नजर जाऐ ।


वह गांव की मिट्टी याद आये,
वह पीपल की ठंडी छांव खुशियों 
की गठरी बांध मां तू चौखट पर 
जब मुस्कुराए खुशियों की
 गठरी बांध मां तू 
चौखट पर जब मुस्काए 


स्वयं भूखे पेट से बच्चों 
को खाना खिलाएं नारी 
की खुशबू ,वारिस की पहली 
बूंद धरा पर गीली मिट्टी की सोंधी 
अस्तित्व तुझ में नजर आए


सपने मन्नते मेरी रब तक 
जब पहुंच ना पाए, 
तेरी सत्यता जीवन में
मुरादे़ पूरी कर जाए 


नर्तकी की पायल टूट कर घुंघरू
जब बदनामियों का शोर मचाए 
त्याग ,समर्पण,बलिदान की
कहानी फिर संसार दोहराएं 
माँ त्याग की मूरत जहां 
समर्पण ही समर्पण नजर 
आए उससे लिपट 
जिंदगी,जिंदगी कहलाये 


निःशब्द हूं 
मां शब्द को बांधना हम 
साहित्यकारों के बस में नहीं है
धन्यवाद 


अंकिता सिन्हा
 जमशेदपुर झारखंड



:तेज धार कि वह बौंछार हैं हम
 फूल नहीं चिंगार हैं हम 
आत्मा की जज्बातों को ललकारे, 
उत्तर तेरे आंखों  की वह आग है हम 
तपती जलती सुलगती संवेदना
 टूटती बिखरती एक पवित्र गंगा की
 मजबूत धार हैं हम 
 घाव की पीप बनकर तेरी आंखों
 में लहुलूहान कर जाएंगे
 ए दरिंदे तेरे जिंदगी की मौत 
के तलब दार हैं हम
 मेरी ममता की अंश को शर्मशार
  गर तू करें
मिटा दे तेरे व़जू़द को ऐसी 
हथियार ,कटार हैं हम 
धन्यवाद 
युवाकवयित्री 
अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर झारखंड


 



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