मुश्किल है कुछ लिखना माँ तुझ पर,
असमंजस में हूँ, कलम उठाया कि कुछ लिखूं,
फिर सोचा क्या लिखूं,
वात्सल्य की वाटिका कहूँ,
ममता की मंजूषा कहूँ,
स्नेह का सुख सदन कहूँ,या
क्या कहूँ या क्या न कहूँ?
कहाँ भूल पाता हूँ, माँ तेरा
वह प्यार का आलिंगन,
स्नेह का वह चुम्बन
मातृत्व की वह ममता,
सत्य पर चलने का वो मार्गदर्शन,
डांटना, ग़ुस्साना फिर प्यार से गले लगा लेना..,
ढूंढते हैं सब ईश्वर को, मूर्तियों में,
भूल जाते हैं क्यों सब,माँ को,
गज़ब की मिलती है शांति,सुकून,आशीष इनके चरणों मे,
भूल जाता हूँ मैं ,ये जहां ,पा जाता हूँ सब कुछ ,इन चरणों मे ।
रहती है माँ तू हमेशा मेरे साथ,
एहसास है , विश्वास है मुझे,
सदा देती है धैर्य,साहस और मंज़िल पर अग्रसर होने की अनंत शक्ति,
जन्म जन्मान्तर के इस बंधन से कभी न करना मुक्त मुझे,
पड़ जाते हैं,शब्द कम,
नम हो जाती हैं ये आँखे,
झुक जाता है यह शीष
तेरे कदमों में,सादर नमन के साथ,माँ
मैं तो परछाईं हूँ तेरी,
मैं लिखावट हूँ, तेरी
तुमने मुझे लिखा, फिर
मैं क्या लिखूं,क्या न लिखूं????
हम मिले थे,मिले हैं,मिलेंगे फिर,माँ...!
सधन्यवाद,
मनोज कुमार पाण्डेय
कोलकाता
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