भारत की महिला अपने पारंपरिक ज्ञान से जो देखने में तो साधारणतः खान पान, रहन-सहन, व्यवहार भर ही हैं बस इनके ही द्वारा अनेक रोगों बिमारियों को अपने घर परिवार से दुर रखती थी तथा अभी भी बालक से वृद्धों तक को स्वास्थ्य अनुकूल पोषण प्रदान करती हैं। स्त्री रोगों मे तो खास पारंगत होती हुई किशोरावस्था से वृद्धा होने तक ज्यादातर परेशानी घरेलू इलाज या कहीये खान पान से ठीक कर पाने का सामर्थ्य रखती हैं। कुछ महिला जचगी के मामले में इतनी निपूण होती की डाक्टर की भांती सही समय बता देती।
ॠतु अनुसार खान पान व पहनावा जब से हम छोड़ने लगे हैं तभी बड़े बड़े हास्पीटल के डाक्टरों व डायटीशियन के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।रसोईघर के अंदर मौजूद मसाले यथा हल्दी, धनिया, काली मिर्च, लौंग, इलायची,हींग का नित्य प्रयोग हमें निरोग रखते हैं तो अनेक प्रकार का काढा , शरबत, शिकंजी, चुरण, सुरमा, काजल,के निर्माण की जानकारी व प्रयोग उत्तम स्वास्थ्य के साथ आर्थिक संबल प्रदान करती हैं।घर की महिला ही मौसम बदलने से पूर्व अपने परिवार के सदस्यों वस्त्र व शयन हेतु आवश्यक सामग्री की व्यवस्था कर लेतीं हैं। इनके अन्यान्य अवस्थाओं व अवसरों पर पहने जाने वाले आभूषणों के प्रयोग को विज्ञान भी स्वास्थ्यप्रद बता रहा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि नवजात बच्चों से लेकर बुजुर्गो के उत्तम स्वास्थ्य व पोषण का चिन्तन व व्यवस्था करने वाली एक डाक्टर से कम कैसे हो सकती हैं।
आज जो हम अपने बुजुर्गों से दुर हो रहे हैं उसका ही असर है कि हम अपने परंपरागत ज्ञान से नानी दादी के नुस्खो सीखो को खोते जा रहें हैं और बाजारवाद पर आश्रित हैं जिससे अपना स्वास्थ्य व धन खो रहें हैं।
चन्द्रा पूर्णिमा
पटना बिहार
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