महिला उत्थान हेतु क्या हो ज़मीनी कार्य-सीमा

सशक्त है, समर्थ है, फिर भी क्यों यही निश्कर्श है,कि महिला अबला है, निशक्त और असमर्थ है। ‘महिला-उत्थान’ यह शब्दावली स्वयं चीख-चीखकर यह कहता है कि महिलाओं की स्थिति समाज में संतोषजनक नहीं है। उसके उत्थान के लिए आवश्‍यक कदम उठाना अनिवार्य है अन्यथा महिलाएँ समाज में दया का पात्र बनकर रह जाएँगी। वास्तव में देखा जाए तो उनकी उन्नति और उत्थान का बीड़ा किसी को उठाने की जरूरत ही नहीं है। समाज में फैली अराजकता व अनुशासनहीनता पर काबू पाने की आवश्‍यकता है। महिलाओं को जब अवसर नहीं मिलता था तभी तक वह पिछड़ेपन का शिकार बनी रही और उन्हें अवसर न देने का निर्णय पुरूष-प्रधान देश व समाज का निर्णय था। किंतु कुछ बुद्धिजीवियों के प्रयास ने जब स्त्रियों को भी समान अवसर देने पर बल दिया तो स्त्रियों ने यह सिद्ध कर दिया कि उनमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। किंतु दूसरी ओर अचंभित करने वाला सच यह भी है कि अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली देश की बेटियाँ कुछ नकारात्मक सोच वाले लोगों के कारण, कुछ मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के कारण असुरक्षित व आतंकित हैं। प्रत्येक पद की शोभा बढ़ाने में समर्थ महिलाएँ जब अपने देश में अपने देश के नागरिकों से ही असुरक्षित अनुभव करेंगी तो देश की आधी आबादी कहलाने वाली महिलाएँ देश का क्या अपना भी विकास नहीं कर पाएँगी। महिलाओं के उत्थान में आने वाले अवरोधों को दूर किए बिना महिला-उत्थान की बात करना स्वयं को भ्रमित करने के अतिरिक्त कुछ और नहीं।


महिला उत्थान हेतु जमीनी कार्य-
1. भेदभाव रहित समाज- 21वीं शताब्दी का यह कड़वा सच है कि आज भी शिक्षित व सभ्य कहलाने वाले अधिकांश लोग बेटी के जन्म पर अधिक प्रसन्न नहीं होते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है किंतु सच भी है। अतः लोगों को इस तुच्छ मानसिकता को त्यागकर बेटा-बेटी दोनों को अपनी संतान समझकर दोनों के लिए मन में एक-सा भाव रखना चाहिए।


2. समान अवसर- संतान चाहे पुत्र हो या पुत्री दोनों को माता-पिता को उनके पालन-पोषण से लेकर शिक्षा-दीक्षा के लिए एक समान अवसर देना चाहिए। कभी यह न सोचें कि पुत्र होता तो उसको पढ़ने के लिए विदेश भेजते पर यह तो पुत्री है। बेटा हो या बेटी उनको योग्य बनाने के लिए एक समान अवसर न देना पाप करने के समान है।


3. सुरक्षा- निःसंदेह यदि समाज में सुरक्षा व्यवस्था अच्छी होगी तो लड़कियों को यह नहीं सोचना पड़ेगा कि उनके लिए 9 से 4 की नौकरी ही अच्छी है। वे अपनी रुचि के अनुसार नौकरी करके अपनी प्रतिभा निखार पाएँगी। लड़कियों को आत्म-रक्षा से संबंधित प्रषिक्षण देना भी अनिवार्य है। अपने साथ हो रहे दुव्र्यवहार की जानकारी महिलाएँ सोशल-मीडिया पर दें और अन्याय न सहें यह भी आवश्‍यक है।


4. समाज का दृष्‍टिकोण-बाल्यकाल से ही घर-परिवार के लोगों को ऐसे कथनों से बचना चाहिए जिसमें यह कहा जाए कि लड़कियों के लिए यह ठीक नहीं, वह ठीक नहीं। घर का काम लड़कियों को यह कहकर सिखाना कि ससुराल में काम आएगा। उन्हें पराया धन कहना भी अनुचित है। ये बातें भले ही साधारण व सामान्य प्रतीत हो रही हैं किंतु ऐसे कथन लड़कियों के अंदर हीन भावना उत्पन्न कर उनके विकास में बाधक हो सकते हैं। लड़कों के अंदर बाल्यकाल से ही यह संस्कार उत्पन्न करना होगा कि वह मातृ-षक्ति को सम्मान की दृश्टि से देखें।


5. विशेष कानून- हमारे देश का कानून स्त्रियों पर होने वाले घरेलू हिंसा से लेकर स्त्रियों से जुड़े हर तरह के अपराध के लिए कठोर होने चाहिए। इतने सख्त कानून कि कोई महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार करने के विषय में सोचे भी नहीं। महिलाओं को भी अपने साथ हो रहे अन्याय को सहन न करके उसका विरोध करके अपने अस्तित्व व आत्म-सम्मान की रक्षा की जिम्मेदारी लेने की आवश्‍यकता है। 


अंततः यही कहना समीचीन होगा कि महिला उत्थान से देश का विकास होगा किंतु इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। कदाचारियों को सड़कों पर खुला नहीं छोड़ा जा सकता और महिला-उत्थान के बिना देश का उत्थान भी संभव नहीं। 



सीमा रानी मिश्रा, हिसाब हरियाणा



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