मजदूर-इंदु

" काहे मुनिया काहे रो रही है " मुनिया की अम्मा ने सुबकती मुनिया से कहा और गोद में लेकर उसके आँसू पोछने लगी, " वो रोती रोती बोली." भईया कहता है बाबूजी नहीं आयेंगे, तेरे जन्म दिन में, लेकिन अम्मा बाबूजी ने तो मुझे कहा है कि वो पक्का आवेंगे, फोन पर भी बात हुई रही हमारी..." एक ही साँस में सारी बात मुनिया बोल गई l
मुनिया की माँ ने उसे समझाते हुए कहा " मेरी बिट्टो आयेंगे काहे नाही और आज थोड़े ही है तोहार जन्म दिन... अबही तो पंद्रह दिन बाकी है !""  अम्मा फुलवा के पापा तो आ गए, वो बोली कोई बीमारी आई है, इसलिए मेरे पापा घर आ गए अब ही नहीं जाएंगे दिल्ली भी, फ़िर हमरे बाबूजी काहे नहीं आए" कहते कहते मुनिया की आँखें भार आईं l डर तो मुनिया की माँ को भी लग रहा था किंतु कहे तो किससे कहे... मुनिया के पापा डबल ड्यूटी करते थे ताकि घर की देख भाल ठीक से हो सके... दिन में मजदूरी और रात को रिक्शा चलाते अच्छा पैसा मिल जाता था l
अचानक मुनिया के घर कुछ दूर पर किसी के रोने की आवाज आई मुनिया डर के मारे अपनी माँ से चिपक गई l उसका भाई दौड़ता हुआ बाहर गया जब आया तो बताया किशन के पापा दिल्ली मे किसी होटल काम करते थे। वहाँ उनको उस बीमारी ने निगल लिया...।
मुनिया जोर जोर से रोए जा रही थी दोनों बाप बेटी में बहुत प्यार था दिन में कई बार मुनिया अपने पिता से बात कर लेती थी किन्तु इधर कुछ दिन से बात नहीं हो रहीं थी।रोते रोते वो सो गई सुबह नींद खुली तो उसकी माँ फोन पर बात कर रही थी " काहे जी आप कौनो पत्थर के बने हैं का, आ कि ऊ बीमारिया आपको जनती है.? सब आ रहे हैं तो आप भी आ जाइए..!" वो बोल रही थी।
फ़िर खुश हो गई मुनिया माँ के पास आई पता चला कि सब गाड़ी बंद है बाकी उसके बाबूजी आ रहे हैं, बाते होने लगी बस रास्ते में हूँ, मुनिया रोज दिन गिनती "और पाँच दिन बचा है, चार दिन, तीन दिन, दो दिन, अम्मा अब एक दिन बचा है  " वो रुआँसी होकर बोली.।" आ जाएंगे काहे घबराती है, सो जा ". सुबह जब मुनिया जागी तो कुछ और ही देखा उसके बाबूजी आ गए हैं, उसके जन्म दिन के ढेर सारा उपहार लेकर, बाकी साथ में पुलिस और बाबूजी नहीं दिखे... दौड़ के पास गई देखा बाबूजी भूमि शयन कर रहे हैं अम्मा उनका उठा रही है " ऐसा काहे किए जी भूल गए का बेटी  जन्म दिन, आपको मना किए रहे मत जाओ उधर मजदूरी के लिए, कर ली न जिद पूरी सो गए सदा के लिए... इतना पैदल काहे चले वो पागलों की तरह रोये जा रही थी और मुनिया कभी अपने पापा को तो कभी भाई को तो कभी माँ को देखे जा रही थी.... किसी की आवाज आई बाहर गया था मजदूरी करने.... 



इंदु उपाध्याय पटना



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