रामप्रसाद अनपढ़ था और मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार तथा बच्चों का पेट पालता था उसकी तीन संतानों में दो बेटे और एक बेटी थी। पूरा दिन जी-तोड़ मेहनत मजदूरी करके दो-चार सौ रुपये ही कमाकर लाता था.. "बच्चों को एक नज़दीकी सरकारी स्कूल में पढ़ने डाल दिया था.. "रामप्रसाद चाहता था कि बच्चे पढ़-लिख जाए तो बच्चों से मजदूरी नहीं करवाऊँगा।
बच्चे भी लगन से पढ़ते थे और प्रथम आते थे,."क्योंकि रामप्रसाद की पत्नी सुमित्रा बच्चों के स्कूल में साफ-सफाई और बच्चों को पानी पिलाने से लेकर सभी काम करती थी और स्कूल की प्राध्यापक के घर का भी़ काम करती थी.. "इसलिए बच्चों की कोई फीस नहीं लगती थी और काॅपी किताब सब स्कूल से मिलती थी यहाँ तक बच्चों को ट्यूशन भी स्कूल की मैडम बिना किसी फीस के पढा़ती थी।
घर के नाम पर रामप्रसाद के पास एक झुग्गी थी जिसे उसने स्वयं ही पत्नी के साथ ईंट,सीमेंट से पक्की कर ली थी."सिर्फ बच्चों का खाने-पीने और कपड़ों का खर्चा था वो भी उनको काफी मदद मिल जाती थी। अपने सदव्यवहार से पति-पत्नी अपने बच्चो को पढा़-लिखाकर अच्छी नौकरी पर लगाना चाहते थे और स्कूल की टीचर ने बच्चों को ट्यूशन के दौरान कम्पूटर भी सिखा दिया था। आज बच्चे बड़े-बडे़ ओहदे पर नौकरी कर रहे थे। बच्चे माता-पिता से कहते कि आप मजदूरी करना छोड़ दो अब हम बहुत कमाते हैं और बच्चों ने शहर में बड़ा घर भी खरीद लिया था, "पर माता-पिता ने मजदूरी करना नहीं छोड़ा और बच्चों को कहा कि जिस कार्य को करके हमने तुम तीनों बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाया उस काम को हम नही छोड़ सकते, कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता इंसान अपने आपको ईश्वर की रजा़ पर छोड़कर संघर्ष करता रहे तो अवश्य सफल होता है।
धन्यवाद ।
रीता जयहिन्द हाथरस
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