मन की बात-इंदु

मन की बात...
" कथनी थोथी जगत में,करनी उत्तम सार..!कथनी तज करनी करो,तब पाओ उद्धार..!! ""आत्म चिंतन से ब्यक्ति अपनी बुराई -अच्छाई एवम गुण-अवगुणों को जान सकता है।हम दूसरों से क्या अपेक्षा करते हैं,उनसे कैसा ब्यवहार चाहते है।
कुछ दिनों से मैं अपनी एक मित्र को परेशान देख रही थी पूछने पर वो ताड जातीं।दिनों-दिन उनकी परेशानी बढ़ती जा रही थी।अब मुझसे उनकी  ये सहन कर पाना सम्भव न था।उनका हाथ पकड़ा और प्यार से सिर पर हाथ फेरा तो रो पड़ी मैंने उन्हें आस्वस्त किया-"आप चिंता न करें इत्मीनान से बतायें क्या हुआ"! वो बहुत सुलझी हुईं हैं!लेखन कला में निपुण आखिर हुआ क्या ..?कहने लगीं उनके कुछ फेसबुक मित्र उन्हें मैसेंजर में जाके तरह-तरह की बाते लिखते हैं।सामने कुछ और अंदर कुछ...मैं परेशान हो गई हूँ।मैने -"कहा ब्लॉक कर दीजिये"!वो बोलीं.." पर कितनो को..?ये क्यों करते हैं ऐसा ? इनके घर मे भी महिलाएँ हैं फ़िर....मै सोंच में पड़ गई.., औरतें मित्र नहीं हो सकती क्या या उनकी जागीर हो जातीं हैं आख़िर क्यों..?कब सुधरेंगे ये..?मजे की बात तो ये की फेसबुक पर बड़े-बड़े उपदेश झाड़तें हैं और अंदर में। ख़ुद मियाँ फ़ज़ीहत, औरों को नसीहत।""अर्थात अपनी बातों पर स्वयं आचरण न करना और दूसरों को उपदेश देना।
कबीरदास जी कहते हैं.."कथनी मीठी खांड-सी ,करनी विष की लोय।कथनी तज करनी करे,विष से अमृत होय..""!!आज के युग में उपदेश बहुत मिलते हैं,पर उन उपदेशों पर स्वयं आचरण करनेवाले बहुत कम।इंसान को कुछ कहने से पूर्व सोच-विचार कर लेना चाहिये कि वह जो कुछ कह रहे हैं क्या वह उसके अधिकारी है भी या नहीं..? दुखी हूँ मैं ऐसे महानुभाओं से कृपया स्वयं को..अतः मेरा अनुरोध है उन महानुभावों से कि वे कभी समय निकाल कर आत्मावलोकन अवश्य करें।



इंदु उपाध्‍याय पटना बिहार



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