मन की बात-किरण

जी चाहता है माँग लूं
दुआओं में वो सारी खुशियाँ
जो भर दे,मेरा घर आँगन और अन्तर्मन 
पर फिर जब देखती हूँ
मासूमों के मुरझाए चेहरे
जो उठाए हुए हैं,नन्हें काँधो पर
अभी से गृहस्थी का बोझ
या फिर कभी देखती हूँ 
उस माँ के दरार भरे हाथ
जिनमें हैं गहरी काली लकीरें
जो दर्शाती हैं, उसके परिश्रम का मोल
कहीं पेड़ों पर झूलते शव
तो कहीं दंगे और उपद्रव
कहीं होता चीर-हरण 
तो कहीं किसी का ज़िंदा दहन
तब दिल से निकलती है फरियाद
हे सृष्टि के पालनहार 
बस बहुत हुआ ये हाहाकार
हे प्रभु! बस इतना कर दो
कड़वाहटें तुम सब हर लो
कर विनाश कुमति का
सद्बुद्धि का वितरण कर दो
पाषाण सम सबके ह्रदय को
करूणा भाव से द्रवित कर दो
अपनी रहमतों से करुणाकर
झोली में सबकी खुशियाँ भर दो


किरण बाला
 ( चण्डीगढ़ )



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