मन की बात -प्रीति

मरने से पहले जी लें एक बार मन कहता है,
दर्द ओ ग़म दिल में ही सीं लें एक बार मन कहता है।


आँसुओं का सैलाब जो उमड़ रहा है आँखों में,
प्यार के दामन से पोंछें एक बार मन कहता है।


प्यार के दिलकश फूल खिल उठें मन के बाग में,
दिल के चमन में ठहर जाये बहार मन कहता है।


इज्ज़त का ताज सोहे औरत के सिर पर सदा,
सड़कों पर न हो आबरू तार-तार मन कहता है।


माँ-बाप की आँखों के सपने पूरे करे औलाद,
प्यार के धागे से बंधे हँसी परिवार मन कहता है।


आँखों में पढ़ लें प्यार के अनकहे जज़्बात हम,
बिन अल्फ़ाज़ों के हो खामोश इज़हार मन कहता है।


चाहतों की ज़मीन पर घर हो वफ़ाओं का,
प्यार के आँगन में न हो कोई दीवार मन कहता है।


वो रिश्ते जो रूह ने रूह से जोड़े हैं यहाँ,
न हो बीच उनके शक की दरार मन कहता है।


माना एक दिन ज़िन्दगी की शाम हो जाएगी प्रीति,
जलते रहेंगे प्यार के चिराग़ हज़ार मन कहता है।


एक बार बाहों में भर लें पहले प्यार को,
 तोड़ दें रस्मों की यह दीवार मन कहता है।


एक लम्हे में सदियां गुज़र जाएं यूँ ही,
 सुकून पा ले दिल-ए-बेकरार मन कहता है।


प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर



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