आकाश की ऊंचाइयों में
बादलों की परछाइयों में
मैं खुद अपनी तलाश कर रहा हूँ
दिल मेरा एक आजाद पंछी है जो खुद नीले आसमान में उड़ता है और नीचे धरती की हरियाली को अपनी खुली निगाहों से निहारता है ....
मेरी आत्मा अनानंद विभोर है मेरे बारे में ये कैसा शोर है?
मैं कहाँ गुम हो गया हूँ मेरी मंजिल कहाँ है ?
मैं कौन हूँ ?मेरी हैसियत क्या है?
मैं किस गली में खो गया हूँ ?
मेरे गुम होने की वजह क्या है?
मेरी अपनी तलाश में वर्षों बीत गए ....
मैं कहाँ हूँ ?मेरी पता क्या है ?
क्या है मेरा जुर्म मेरी सजा क्या है?
मैं खुद को ढूढना चाहता हूँ
समुद्र की गहराइयों में ,मनुष्य की परछाइयों में ,धरती की हरियाली में ,गमो में ,तन्हाइयों में
आखिर क्या वजह है मेरे नीचे गिरने की ?मै उठना चाहता हूँ,
जुर्म के दलदल से निकलना चाहता हूं पर....
मेरे कदम क्यो लड़खड़ाए जा रहे हैं ?
मेरे अपने क्यो मेरे से नजरे चुराए जा रहे हैं ...
आखिर मकशद क्या है?
मेरे सवालो का ,जवाबो का अल्फाजो का मैं यह नही बता सकता ,क्योकि मैं इस चारदीवारी में कैद अपनी जिंदगी को ढूंढ रहा हूँ ..….
मैं जो आपसे कह गया उसे गहराई से सोचिए अपने आईने में अपने दिलकश परछाई को देखिए ....
जो हुआ सो हुआ ,अब मैं आगे आना चाहता हूँ अपना हाले दिल मैं सबको सुनाना चाहता हूँ
अभी भी वक्त है....
मैं अपने आप को समाज की कसौटी में खरा उतरना चाहता हूँ
दुनिया की दौड़ में मैं भी आगे आना चाहता हूँ जिंदगी को मैं अपने संवारना चाहता हूँ
सतीश बी सिंह गाधिपुरी
0 टिप्पणियाँ