मुखड़ा-रेखा

एक दिन आपका में रेखा तिवारी की कविता


गढ - गढ तड- तड़ करती देखो
बारिश की फुहारी थी
कुछ शोर गिराने के थे
कुछ डर के बीच छिपी कोख मे
ईक किलकारी थी
रिमझिम बारिश सौधी खुशबू
मे महकती मेरी फुलवारी होगी
ये सोचकर बस माँ पूरे भावावेश
मे चीत्कारी थी
तभी पेट के भीतर एक हलचल हुई
बेटों ने हौले से लात मारकर भीतर से मनोबल उसका बढाया था
चूमकर मातृत्व ने कोख को प्यार
जताया था
किलकारी की फुलवारी मे अब
सूरजमुखी के फूल हंस रहे थे
माता के ईस वजन मे सभी स्तब्ध
खडे थे
आज धरा के वंशधारो तुम मेरा
अभिमान नहीं
बेटी ना बचा पाये तुम तो
तुम्हे बेटी गिराने का भी कोई अधिकार नहीं
जाती हू अब बाहर जीने अब
बेटी को सीने से मुझे लगाना है
बेटी की मां होने का गर्व से सीना
मुझे चौडा करना होगा
जब मातृत्व की परिभाषा लिये
पशु भी बलशाली हो जाता है
जंगल मे शेरों से भी बचाकर वह
शेरनी भी बच्चों को शेर बना जाती है
निष्कंटक प्रभु जब सबके …


 


रेखा तिवारी बिलासपुर


 



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