तराशा है बहुत दर्द
को लफ्जों में सजाने
के लिए..!
गजल की शक्ल दे सकूँ उसे
जरा सुनाने के लिए..!!
बाद मुद्दत के अब ये बात
शायद समझ अाई है..!
जब हम सदमे में हों तभी
अक्ल काम अाई है..!!
टूटना भी खैर उतना बुरा
नहीं होता है...!
सीखा देता है संभल कर
चलना कैसे होता है..!!
मानो बचपन में माँ ने उंगली
थाम चलना सिखाया हो...!
गिरते ही जैसे हमें गोद में
उठाया हो,,,!!
ज़िन्दगी तू भी तो कभी-कभी
मां जैसी ही लगती है...!
जीने से पहले और जीने के
बाद भी ऐ जिंदगी..!!
तू तो आखरी सांस तक सिखाती
ही रहती है जीने का हुनर,,..!
तब भी तुझसे ही शिकायत थी
अब भी है...!!
शायद तब भी होगी आखरी
पल तक...!
फिर भी तू कुछ नहीं कहती
कभी..! !
जिंदगी तू कितनी अच्छी है.., !
सदा मुस्कान देती है माँ की
तरह...!!
इंद उपाध्याय पटना बिहार
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