रात करवट बदलते -बदलते ही कट गई,
न जाने किस बात से निंद्रा देवीरूठ गई,
सोचा थकान कुछ ज़्यादा होगई,
इतने में ही कुछ फुसफुसाने की आवाज़ आई;
कौन है भाई, किसने दिल की धड़कन है बढ़ाई।
आवाज़ ललाट चूम हौले से मुस्कराई
मुझे नहीं पहचाना,मैं ही तो हूँ तुम्हारा हमराही।
उम्र होगई अब तुम्हारी
चलो सङ्ग रहते हैं,कभी खाँसी, कभी बुखार,
कभी कमर दर्द ,तो कभी घुटना दर्द बन साथ निभाते हैं;
सुनते ही मैंने छोड़ा बिस्तर, ली भरपूर अँगड़ाई,
किसने पहुँचाई ऎसी ख़बर तुमतक भाई?
कौन कहता है उम्र हो गई अब मेरी !
मैं तो ऐसा नहीं समझता,जब भी घुटना दर्द करे
लम्बी साँस भरकर उसे विदा कर देता हूँ।
कमर दर्द जब उम्र का एहसास कराए,
तब कुछ ख़ास पलों को याद कर
अपनी जवानी जी लेता हूँ।
आँखों से जब धुँधला दिखलाई दे तब
कॉलेज के दिनों को याद कर लेता हूँ।
सच मानो यारों !न जाने कहाँ से चमक आ जाती है।
रूखे गालों पर भी सुर्ख़ लाली छा जाती है।
गिनती के हुए साल साठ तो क्या हुआ!
दिल से तो स्वयं को तीस का ही समझता हूँ।
हाँ!आज भी मैं स्वयं को नौजवां ही समझता हूँ
बुढ़ापा नहीं , मैं ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ।
मैं ज़िंदगी जीना चाहता हूँ,
जीवन के इस मोड़ पर मुस्कान
बिखेरना चाहता हूँ।
हाँ !मैं मुस्कराना चाहता हूँ।
माधुरी भट्ट पटना
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