नजरिया-अन्नपूर्णा बाजपेयी 

अजी! सुनते हो , शर्मा जी की बहू  अब जिला मजिस्ट्रेट हो गयी है ।' दमयंती चाय बनाते हुये रसोईघर से ही बोली । बाहर आँगन में बैठे नीलेश को कोई उत्तर न देते देख वह फिर बोली और चाय छानने लगी । दमयंती पूरे मोहल्ले की ब्रॉडकोस्ट रिपोर्टिंग ऑफिसर थी । या यूं कहें कि बस खबर इधर से उधर पहुँचाना उनका पसन्दीदा काम था । इसलिए नीलेश ने उसकी बातों में कोई दिलचस्पी न दिखाई।चाय लेकर दमयंती पास आ गयी और कुर्सी खींच कर बैठते हुए बोली,' एक तो शर्मा जी का बेटा ही प्रशासनिक अधिकारी है और अब बहू भी डी एम हो गयी । घर के बाहर गाड़ियों की लाइन लगी रहती है  और एक हम है कि बहू मिली वो भी कंगाल !'अब नीलेश ने अपना मुँह खोला , "क्यों ! क्या कमी है हमारी बहू में!  सुंदर है, सुशील है, पढ़ी लिखी है, संस्कारवान है! तुम्हारा और हमारा ख्याल रखती है, बच्चों की बेहतर परवरिश कर रही है!" दमयंती ने मुँह बिचकाया और बोली , "हुँह! इससे क्या फर्क पड़ता है।" नीलेश आगे कहते रहे, " इन सबके साथ हमारी बहू सोशल वर्क भी कर रही है जिससे हमारा ही नाम रौशन हो रहा है । अब गाड़ियों की लम्बी कतार भले ही हमारे दरवाजे पर न हो लेकिन उसको लोग ज्यादा सम्मान देते हैं। शर्मा जी की बहू तो केवल पद के रुआब में रहती है। कभी देखा है उसे किसी से भी सभ्यता से बात करते हुए ।" दमयंती की आँखे सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं । "हमें तो हमारी बहू ही सबसे अच्छी लगती है । अब तुम भी उसमे अच्छाई देखो तो सोने में सुहागा हो जाये।" नीलेश ने कहा । इसके साथ दमयंती ने भी सहमति में सिर हिला दिया । उसकी ऑंखे अब चमक उठी थीं । 


प्रेषिका 
अन्नपूर्णा बाजपेयी 
कानपुर



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