न्‍योता-संतोष शर्मा

हास्‍य


हमारे ब्रज में अनेक बातें ऐसी हैं जो ना चाहते हुए भी हास्य   का कारण बन ही जाती हैं उन्हीं में से एक है न्योता ‌‌  (निमंत्रण) वह भी खाने का , लेकिन हमारे मुरली पंडित जी ऐसे हैं  ! कि  जिनको तो मजबूरन सभी को न्योता देना ही पड़ता है !! पंडित जी जो ठहरे ! शादी ब्याह में नामकरण में श्राद्ध में बारहवीं में तेरहवीं में मरे जिन्दे सब में ..... और वह जाते भी मूंछों को बड़ी पैनी और चोटी को संवार कर के ।लेकिन जब कोई अवसर अपने घर में न्योता देने का आता है तो पंडित जी की सांसें फूलने लगती हैं और दूसरों की बजाय स्वयं का हाजमा बिगड़ने लगता है।
उनके सभी यजमानो और परिचितों सहित मित्रों को भी पता रहता है कि पंडित जी के न्योते‌‌ से कभी किसी का पेट तो दूर मुंह भी भर जाए तो गनीमत समझना,  ज्यादा से ज्यादा चरणामृत पिलाकर आपको ससम्मान विदा कर देंगे , परंतु भोजन  ! अजी भजन का नाम लो भजन का! !
एक बार ऐसे ही पंडित जी के बारह वर्षीय बेटे का  अवतरण दिवस आया अब जब वह बेटा अपने सभी मित्रों के यहां जाता है तो सभी मित्रों को भी तो न्योता देना ही पड़ेगा सो पुत्र ने अब की बार पंडिताइन से कहलवाकर अपने अवतरण दिवस पर एक सुंदर सा आयोजन रखा है और वह भी पूरी तरह भारतीय संस्कृति के अनुरूप और पुत्र ने पिता से अपने मित्रों को न्योता देने जाने की आज्ञा मांगी तो पिता ने तुरंत यह कहकर स्वयं जाने की इच्छा जाहिर की कि -पुत्र की खुशी में पिता को ही सारी व्यवस्था और जिम्मेदारी संभालनी चाहिए अतः तुम घर पर रहो हम नयोत  कर आएंगे।और पुत्र के सभी मित्र परिवार को न्योतने का जो पंडित जी का तरीका था वह बड़ा ही विचित्र था। श्री श्री आदरणीय यजमान जी वह क्या है कि कल हमारे पुत्र का अवतरण दिवस है तो आप हमारे निज निवास पर सादर आमंत्रित हैं सपरिवार आइएगा और सुनिए जजमान ! अपने घर खईंयों मत बिना बुलाए अईंयों मत , हं हंहेंहें  हम सुबह बुलावा भेज देंगे ।
सभी मित्र जजमानों ने सोचा कि चलो अबकी बार ‌पंडित जी ने पुत्र की खुशी में प्रसाद के भंडार खोल दिये । दूसरे दिन सभी मित्र परिवार काफी देर  प्रतिक्षा करने के पश्चात पंडित जी के द्वार पर पहुंच गए उन्हें देखकर पंडित जी खिसियानी हंसी से उनका स्वागत किया हैं हैं हैं  अरे  ! जजमान आप सभी आ गए  !! पधारिए पधारिए।वह हंसकर बोले  "  आप आ ही गए  ! लेकिन हमने तो न्योता देते समय कुछ और भी कहा था !!  शायद आप समझ नहीं पाए  , अब आ ही गए हैं तो बिराजें  और तनिक हमारे अर्थ को समझने की चेष्टा कीजिएगा ।
 यहां सारे अतिथियों को सुबह से दोपहर तो वैसे ही हो गई थी पुत्र के मित्रगण भी बार-बार जल का आग्रह करते कि चलो उन्हें कुछ समझ आ जाए पर उन्होंने भी अपने न्योते  का अर्थ सभी को कैसे समझाना है सोच लिया था। सो हर किसी के जल आग्रह पर बड़े आदर और सम्मान पूर्वक जल  ला  लाकर दे रहे थे अब ज्यों ही शाम हुई तो  सभी के सब्र का बांध टूट गया ।
और जितने भी अतिथियों के पेट में चूहे  , बिल्ली  , शेर  , भालू लड़ रहे थे वह इन सभी को साथ में लेकर हमला बोल ही दिया अरे पंडित जी सवेरे से प्रवचन सुनकर और पानी पीकर अब तो पेट में इतनी कीचड़ हो गई है कि अब तो फिसलने का बड़ा ही खतरा है आप कोई व्यवस्था क्यों नहीं करते!?
पंडित जी की लोभी और चतुर बुद्धि ने ऐसा जवाब दिया कि सभी अतिथियों के पेट की ‌आंतों  ने जीवनभर के लिए ऐसे पंडित जी के घर का आतिथ्य स्वीकारने में कानूनी स्टे लगा दिए ।
हें हें तो जजमान सूखे में होकर अविलंब प्रस्थान ‌कीजिए  , अरे हां ! आप सभी ने बड़ी एकाग्रता से तन्मय होकर प्रभु का प्रवचन सुना  जरा चरणामृत तो लेकर ही जाइए  !!आप सभी का कल्याण हो  । 
सभी मित्र परिवार हाथों में चरणामृत लेकर रुंवासी प्रसन्नता से बोले पंडित जी एक प्रश्न है यदि उसका उत्तर मिल जाए तो हम धन्य हो जाएं ।
 " यजमान पूछिए ना "
जरा हमें अपने न्योता देने का अर्थ समझा दीजिए और आपके पुत्र के अवतरण दिवस पर आयोजन का प्रयोजन बतला दीजिए पंडित जी बस ।
अरे जजमान हमें भला क्या प्रयोजन ! हमें तो स्वयं आप लोग ही पुण्य के भागीदार बनकर अपने पुण्य से धन- धान्य कर देते हैं सो बस !! और रही बात उत्तर की तो उसी उत्तर में यजमान आपका उत्तर है समझने की थोड़ी आपकी भूल है।
हमारा कथन था
"" अपने घर खईंयों मत
बिना बुलाए अईंयों मत ""
सभी मित्र परिवारों का सिर चकरा गया और पंडित जी की बुद्धि चतुराई को  साक्षात दंडवत प्रणाम करके निज निवास के लिए प्रस्थान कर चले।


 


संतोष शर्मा   शान
हाथरस



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ