शालिनी पहली बार मायके आयी और माँ के गले लग कर रोए जा रही थी किसी ने गम्भीरता से न लेते हुए उसे फ्रेश हो खाने पर बिठा लिया। कई दिनों तक भी कुछ पूछने पर सब ठीक है कह हारते मन से शालिनी सर झुका लेती। पर उसकी छोटी बहन बेचैन थी कि आखिर क्या है जो उसकी बहन बुझि-बुझि सी हो चुकी ऐसी तो वह पहले नही थी कई दिनों तक भी जब उधर से उसके जीजा का कोई फोन न आया न उसने कोई खैर-खबर ली तो धीरे-धीरे छोटी बहन सब समझने लगी।वक़्त से पहले धन के लालच मे उसके माँ पिता ने एक एसे घर मे शादी कर दी जो अपनी पहली बहु से प्रताड़ित था जिसके घरवालों ने भी दुखी हो कर दूसरी शादी के लिए स्वीकृति दे डाली।
लेकिन ये किसे पता था के दूसरी शादी बाद घर की ये हालत हो जाएगी और इस तरह पहली वाली बहु जबरजस्ती लौट आएगी और बेटा दोनों बहुओं के बीच यूँ फंसा हुआ हो जाएगा ये सारी बातें छोटी बहन को खल रही थी और वो अपनी माँ पर चिल्ला पड़ी "तुम्हे तो बस धन दिखता है चाहे बेटी को दामाद समझे या ना समझे कभी देखा है दीदी के मुंह को कैसी हो गयी"।
"अरे तो इसमे चिल्लाने की क्या बात है दामाद जी आकर बोले तो हैं कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। क्यों नही भरोसा रखती। वो क्या जानता था कि जो बहु घर को घर न जानी ,सास-ससुर को नही समझी मायके मे ही रहती रही न मायकेवालों की सुनी न दुनियावालो की वो दूसरी शादी के बाद अचानक मुँह उठा कर इतने सालों बाद लौट आएगी बेशर्मी के साथ। लेकन ये भी अच्छा है कम से कम उसने अपनी गलती तो मानी। धीरे-धीरे वो भी शांत हो जाएगी तू सब्र कर। इतना अच्छा घर बिन दहेज बस लड़की चाहने वाले सबको ऐसे ही नही मिल जाते"। पास में बैठे शालीनी का भाई भी सर हिलाते हुए बोला सही बात है पहली शादी भी उन लोगों ने बिन दहेज ही की पर लड़की घर चलाने वाली न निकली तो बेचारे वो क्या करते तभी तो उन्हें दूसरी शादी की स्वीकृति मिल भी गयी यदि उन लोगों मे ही खोट होता तो दूसरी शादी को कोई स्वीकृति दे ही नही पाता। तू ठीक से रहेगी तो उनके घर नही दिल मे राज करेगी। दामाद जी पर भरोसा कर अभी वो पहली वाली के आतंक से खुद परेशान हैं तुझे सब्र से काम लेना होगा धीरे धीरे सब एडजस्ट हो जाएगा।
शालिनी और उसकी छोटी बहन सब सुन समझ रहीं थी। बस इन सब बातों को मन मे रख कुछ दिनों मे शालिनी सब्र के साथ फिर ससुराल विदा हो गयी। साल का पहला करवाचौथ और दिल मे अरमान सजाए वो इन्तजार मे ही रही के शायद आज तो जरूर आएंगे पर ये क्या? पता चला कि बड़ी बहू ने हिलने ही नही दिया। जहर का घूँट पी कर मन मार वो यूँ ही व्रत खोल के रह गयी। कोई बात नही सास ससुर तो मेरे लिए ही सोचते हैं। सब मेरे साथ हैं कभी न कभी तो मेरी जीत होगी ही, कभी तो भगवान मेरी सुनेगा। यही दिलासा खुद को दे कर वह रह गयी। तब तक कुछ महीने बीते और होली आ गयी और अब तो बड़ी बहुरानी लड़-झगड़ कर जा भी चुकि थी। इस बार तो पक्का आएंगे ये सोच ढेरों पकवान बना कर फिर इन्तजार रहा पर ये क्या सब आए घर भरा पर वो फिर भी नही। कभी-कभी होली के रंग देख मन खुश होता तो फिर कभी अपनी जीवन को रंगहीन देख उदासी।सबको खिलाना-पिलाना,घर-रसोई संभालना और फिर अकेले बिस्तर पर पड़े-पड़े रोना अपनी पहली रात याद कर बस यही किस्मत दिखाई देती। दूर तक आस नही, किससे और कैसे क्या कहा जाए। कैसे जीवन सुन्दर बने समझ नही आता। सास बेचारी देख-देख मन ही मन कुढ़ती बेटे से लड़ती तो बस कभी-कभी घर आ कर दिन-दिन मे सबसे मिल कर चला जाता ये कह कर के सब ठीक हो जाएगा पर नही सब वैसा का वैसा ही रहा और अपनी आधी जिन्दगी उसने इसी सब्र मे बिता दी कि सब ठीक हो जाएगा कभी तो मेरी जीत होगी,कभी तो भगवान सुनेगा।
इंदुरनी इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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