पढ़ने की डालो आदत-डॉ प्रभात

विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर विशेष डा प्रभात पांडें भोपाल की विशेष प्रस्‍तुति
हम अक्सर बच्चों में पढ़ने की आदत का विकास करने के बारे में सुनते हैं। इस बारे में चर्चा भी होती है। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ग़ौर किया है कि जबतक माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक खुद अपने पढ़ने की आदत का विकास नहीं करते, बच्चों को केवल कहने उनमें पढ़ने की ललक का विकास नहीं होगा। इस बात ने इस मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि बड़ों में पढ़ने की आदत का वर्तमान ट्रेंड क्या है और कौन-कौन से कारण हैं जिसके कारण वे पढ़ने की आदत डालने में परेशानी महसूस करते हैं। बड़े चाहते हैं कि बच्चे पढ़ें, लेकिन वे खुद बच्चों को पढ़ते हुए नज़र नहीं आते। ऐसे में बच्चों पर उनकी कही हुई बातों का भी बहुत ज्यादा असर नहीं होता है।
बतौर पाठक अपना खुद का मूल्यांकन करने के लिए आप सोच सकते हैं कि पिछले एक साल में आपने कितनी किताबें पढ़ीं? कितनी किताबों का चुनाव आपने स्वेच्छा से अपनी रूचि के अनुसार किया? कितनी किताबों को आपके मन में पढ़ने की इच्छा हुई, लेकिन आपने उस किताब को खरीदना या किसी दोस्त से लेना आगे के लिए टाल दिया। कई बार ऐसा भी होता है कि पुस्तक मेले या पियर प्रेसर में आप कई किताबें खरीद लाते हैं, लेकिन फिर वे किताबें पड़ी-पड़ी धूल फांकती हैं या फिर आलमारी की शोभा बढ़ाती हैं। उनसे बतौर सक्रिय पाठक आपकी मुलाकात नहीं होती है। पढ़ने के लिए एक प्रेरणा और मोबाइल फोन व अन्य संचार-मनोरंजन के व्यवधान से आजादी चाहिए होती है, क्योंकि ये चीज़ें आपका ध्यान पढ़ने से हटा लेती हैं। फिर पढ़ने का प्रवाह टूट जाता है और दोबारा उस किताब की तरफ बड़ी मुश्किल से लौटना होता है।


पढ़ने की मेहनत करने का संकल्प करें
अगर आप कोई किताब पढ़ रहे हैं तो कई बार ऐसा होता है कि आपके साथी कहते हैं कि इस किताब में क्या है? पढ़ने के बाद मेरे साथ शेयर कर दीजिएगा। दूसरा तरीका कि जदो किताब आप पढ़ रहे हैं, उसके ऊपर पीपीटी बना दीजिएगा ताकि बाकी लोगों को भी किताब पढ़ने का लाभ मिल सके। तीसरा तरीका किताब पढ़ने की क्या जरूरत है, मेरे साथ के लोग तो मुझे किताब पढ़कर बता ही देते हैं कि किताब में मुख्य-मुख्य बात क्या कही गई है। टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल खूब होता है जैसे किताब की समीक्षा गूगल सर्च करो और पढ़ लो।अगर किताब के ऊपर कोई वीडियो है तो यू-ट्यूब पर सर्च करो और देख लो। किताब तो बाद में पढ़ी जाएगी। यह तरीके कुछ हद तक मदद करते हैं। लेकिन बतौर पाठक किसी किताब को पढ़ने से जो आपकी समझ में बढ़ोत्तरी होती है। शब्द भण्डार संपन्न होता है। आप अपने अनुभवों के लिए शब्द खोज पाते हैं। उदाहरण बनाने और तर्क देने की क्षमता का जो विकास करते हैं, वह केवल दूसरों पर निर्भरता से हासिल नहीं होगा। तो पढ़ने से बचने वाली आदत के कारण खुद से पढ़ने की आदत का विकास बड़ों में नहीं हो पाता है। हालांकि वे सैद्धांतिक तौर पर इस बात को स्वीकार तो करते  हैं और कहते भी हैं कि पढ़ना बहुत जरूरी है।


पढ़ने का चस्काः बच्चे और बड़े
बड़ों को पढ़ने का चस्का लगाना, बच्चों से ज्यादा मुश्किल काम है। व्यावहारिक अनुभव तो इस तरफ संकेत करते हैं। हालांकि रीडिंग रिसर्च इस बारे में क्या कहती है, यह अध्ययन करने व खोजने का एक अच्छा टॉपिक है। मैंने ऐसी टीम के साथ काम किया जो बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित हो इस लक्ष्य के साथ काम कर रही थी, लेकिन वह टीम खुद किताबों को पढ़ने में बहुत कम भरोसा करती थी। किसी पठन गतिविधि को करते समय उनका पूरा ध्यान प्रक्रिया और स्टेप को फॉलो करने में लगा रहता, ऐसे में कहानी का मजा किरकिरा हो जाता था। टीम के पढ़ने की आदत का विकास हो, इस दिशा में विरले ही टीम लीडर काम करते हैं। लेकिन इस दिशा में काम करने के सकारात्मक परिणाम होते हैं, इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा।पढ़ने के लिए समय निकालना बहुत जरूरी होता है। अगर हम सुबह के समय बग़ैर कुछ पन्ने पढ़े या लिखे कोई और काम करने की तरफ न बढ़ें और इसे रूटीन का हिस्सा बना लें तो काफी हद तक संभव है कि हम अपने पढ़ने-लिखने के लिए एक बेहद उपयोगी और ऊर्जावान समय निकाल सकेंगे। इसके लिए सुबह-सुबह ह्वाट्सऐप और फेसबुक के नोटीफिकेशन चेक करने और उनका रिप्लाई करने की आदत को भी बदलना पड़ेगा।क्योंकि रूटीन की इस आदत के कारण हमारा काफी सारा समय यहां सप्लाई होने वाले ऐसे मैसेज को पढ़ने और अनुपयोगी तस्वीरों व वीडियो को डिलीट करने में चला जाता है। इस समय का अच्छा इस्तेमाल जरूरी है। दिनभर स्क्रीन पर होने का हमारे ऊपर असर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि हम कुछ समय स्क्रीन से इतर किसी किताब को पढ़ने। किसी किताब के ऊपर अपने मन में आने वाले विचारों को पेन-पेपर की मदद से लिखने की कोशिश करें, यह हमारे मन को एक सकारात्मक ऊर्जा से भरेगी और विचारों के बाधित प्रवाह को फिर से आगे बढ़ने का रास्ता देगी।


खुद को पढ़ने का चस्का कैसे लगाएं?
खुद को पढ़ने का चस्का लगाने का सबसे अच्छा तरीका अपनी जिज्ञासा को दबाने से बचना है। अपने मन में उठने वाले सवालों का जवाब जानने की मेहनत में कंजूसी न करें। किताबों के पन्ने पलटें, लोगों से सही किताब के बारे में पूछें, किसी टॉपिक पर लिखना है तो उस पर कुछ पढ़ें, किसी डॉक्युमेंट पर टीवी प्रोग्राम देखकर राय कायम न करें, खुद उस दस्तावेज़ को पढ़ें फिर स्वतंत्र चिंतन से अपनी राय बनाएं।
किसी कविता, कहानी या गद्य को पढ़ने के बाद उसके बारे में चिंतन या रिफलेक्शन करें। उसके बारे में थोड़ा ठहकर सोचें कि लेखक ने ऐसी बात क्यों लिखी होगी, लेखक के सामने क्या परिस्थितियां रही होंगी, लेखक कहना क्या चाहता है, क्या लेखक अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कह पा रहा है इत्यादि। ऐसे प्रयास से आपको पढ़ी हुई किताब की सामग्री और उसके मुख्य बिंदु याद रहेंगे।किताब पढ़ने की प्रक्रिया में नोट्स लें। अपने मन में आने वाले महत्वपूर्ण विचारों को नोट करें। महत्वपूर्ण अंश को रेखांकित करें ताकि दोबारा कुछ खोजते समय आपको आसानी से वह अंश मिल जाए। पुस्तक समीक्षा लिखना भी एक अच्छा जरिया है।
इस विचार या भ्रम को तोड़ना कि हमारा काम बग़ैर पढ़े भी चल सकता है। हमारा काम पढ़ने की आदत और उससे मिलने वाले विचारों से कई गुना बेहतर हो सकता है, इस सकारात्मक संभावना में ज्यादा शक्ति है। इसलिए पढ़ने की मेहनत करें और अपनी समझ को बेहतर करें।जब किसी किताब को पढ़ने बैठें तो उसे सरसरी निगाह से देखें। पुस्तक के लेखक-चित्रकार, प्रकाशन, मूल्य और किताब के प्रमुख चैप्टर और उसके शीर्षक को देखें फिर उसे विस्तार से पढ़ें। अपने काम से जुड़ी सामग्री को पढ़ना और वहाँ से मिलने वाले विचारों को जमीनी स्तर पर लागू करने की आदत आपको एक बेहतर क्रियान्वयन वाले लीडर के रूप में स्थापित कर सकती है। तो फिर लगातार पढ़ते रहिए, जीवन में नये विचारों को इस खिड़की से ताजी हवा के झोंकों की तरह आने दीजिए।

डा0 प्रभात पांडें, भोपाल, मध्‍यप्रदेश


 


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