अमिता मास्टरनी नइ नइ कालोनी ने रहने आयी ये वो एरिया था जो शहर मे बेस्ट समझा जाता था और उस मास्टरनी के लिए तो था भी क्यों के पड़ोस वाली आपा अक्सर उसे दीन-धर्म की बात समझाने बुझाने वाली और हर मुसीबत मे साथ देने वाली जो थीं। कभी कभी विद्यालय जल्दी जाना पड़े तो वह दूध का बर्तन पड़ोस मे उन्हें ही दे के चली जाती कभी कोई परेशानी नही ।
तभी कुछ समय बाद आपा अपने बेटों के पास रहने चली गयी और उनका वो फ्लेट उनकी बेटी ने दिल्ली से आ कर ले लिया। मास्टरनी उन्हें आपा की बेटी समझ कर अपने जैसा ही समझती थी पर ये क्या आजमाने पर वो तो आपजे से बिल्कुल अलग निकली,उसे मजबूरन घर बच्चों के लिए एक आया रखनी पड़ी।
अब उसे वो सारी बाते याद आयीं जो लोग अक्सर उससे बोलते थे कि मुस्लिम एरिया है यहां रहना ठीक नही ये लोग तुम्हारे नही होंगे भले कलेजा दे दो ।पर सबकी बात मन मे रख बाकी के समय को भी उसने वही बिताया तभी उसके संग की दूसरी मास्टरनी की काम वाली बाई अचानक गायब हो गयी अब वह अपने दूध का बर्तन अमिता मास्टरनी के ही घर दे जाती और अमिता ने उसे मुस्लिम जान कर कभी भेद-भाव भी नही किया।
अक्सर उसकी यह भावना व आपसी समझ देख आपा की दिल्ली वाली बेटी शर्मिंदा होती के अपनी इतनी अच्छी पड़ोसन के काम न आ कर उसने धार्मिक भेद- भाव का ही प्रमाण दिया है और वह ग्लानि से भर गई। तभी एक दिन अचानक अमिता की आया भी किसी कारण लेट हो गयी अब दोनों मास्टरनियों के दूध का बर्तन कौन ले कैसे आज का दूध मिल सके बड़ी परेशानी तभी आपा की बेटी ने उन दोनों को परेशान होता देख पश्चाताप का अवसर पाया और दोनों के दूध का बर्तन अपने ही पास खुद रख लिया और उनके काम आ कर खुद को संतुष्ट महसूस किया,अब उसकी वो आत्मग्लानि भी दूर हो गयी।
रानी इन्दु अमरोहा
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