पड़ोसन-किरण बाला

क्या तुमसे से भी उन्होंने पैसे उधार माँगे, मुझे लगा कि मेरे से ही माँगती हैं ! मेरे आश्चर्य की सीमा ना रही जब साथ वाली पड़ोसन से मुझे ये बात पता चली |ये सामने वाली आँटी भी न बड़ी ही अजीब हैं |
बीस हजार रुपये महीने का किराया आ जाता है और दो जगह से सरकारी पेंशन,फिर बेटे की अच्छी खासी दुकान की कमाई, उस पर भी जब तब रूपए माँगने आ जाती हैं |कहती हैं किट्टी के पैसे भरने हैं...अरे भाई, जब नही भरे जाते तो क्या जरूरत है किट्टी डालने की ? मुझे कहती हैं कि बिन्दु की माँ, इतना कमाती है कुछ अपने ऊपर भी खर्च कर लिया कर | मैं भी पलटकर कह देती हूं कि आँटी मैं तो अपनी चादर देख कर पैर फैलाती हूँ | मैं आपकी तरह अमीर नहीं जो तीन-तीन हजार के सूट खरीदूं | 
कभी -कभी तो समझ नहीं आता कि ऐसा क्या है, दिखावे की जिंदगी में ! यहाँ आमदनी अठन्नी, खर्चा रूपया वाली बात है या फिर लोगों को आदत पड़ जाती है उधार की जिंदगी जीने की |


                        ---©किरण बाला 
                               (चण्डीगढ़)



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