पड़ोसन-पाखी


शहर के हालात सही नहीं थे। लाकडाउन के चलते माधवी परेशान थी। बच्चे हॉस्टल में और पति ऑफिस के काम से दूसरे शहर में फँसे हुये थे। हर पल जान मुँह को आती थी।कभी बाल्कनी ,कभी दरवाजे पर चिंतित सी खड़ी रहती।ट्रांसफर होकर कुछ ही दिन पहले तो आये थे यहाँ।बाकी सब तो ठीक था पर दूध आदि छोटी छोटी जरुरतों के लिए परेशान हो गयी। मिल्क पावडर भी कल खत्म हो चुका था।मुई चाय की आदत!! 
ब्लैक टी से सरदर्द होने लगा। क्या करूँ सोचती हुई मेन गेट तक आ गयी। थोड़ा सा झांक कर देखा सब जगह सन्नाटा बिखरा पड़ा था। 
"अरे दीदी ,क्या हुआ?"दरवाजा बंद कर ही रही थी कि आवाज आई।
देखा पड़ोसन उसके घर के दरवाजे से थोड़ी दूर खड़ी थी।
"जी ,कुछ नहीं।"भरसक कोशिश की मुस्कुराने की पर हो न सका। ज्यादा जानती भी तो नहीं थी पडोसियों को ।
"दीदी ,मैं आपके पड़ौस में ही रहती हूँ ।ऊषा नाम है मेरा। आप परेशान लग रही हैं। मेरी छत से आपका आँगन दिख जाता है।"
"जी ,नमस्ते ।कुछ खास नहीं बहन।"कहते कहते रूआँसी हो आयी माधवी
"दीदी ,निसंकोच बताइये ।अगर मुसीबत में पड़ौसी काम न आये तो पड़ौसी कैसे ?"
कहते हुये ऊषा ने किसी को आवाज दी।
"जी ..हम लोग कुछ ही दिन पहले आये हैं।पति बाहर हैं । घर में जरुरी चीजें खतम हो गयीं।पता नहीं था कि यह सब हो जाएगा।नहीं तो सब ले आते साथ।" कहते हुये अनाम आशंका मन में उपज गयी
तभी एक दस बारह वर्ष की बच्ची दूध का पैकेट ले आई
वह माधवी के गेट पर रखते हुये बोली ,
"बहन ,कोई बात नहीं। आप मेरा नं. रख लो ।मैं छोटा सा प्रोवीजनल स्टोर चलाती हूँ ।तो कोई समस्या नहीं।जब भी जिस चीज की आवश्यकता हो बता दीजिए।हमने परमीशन ले रखी है ।"
माधवी का डर कुछ कम हुआ। आभार व्यक्त करते हुये मुँह पर हल्की मुस्कान आ गयी।
"मैं पैसे लेकर आई " कहते हुये ठिठक गयी। क्षमा कीजिए आपको अंदर आने को न कहा।
"कोई बात नहीं। कानून का पालन हमें भी करना चाहिये। आप पैसों की चिंता न करें। इकट्ठे दे दीजिएगा।"कहकर ऊषा अपने घर की ओर चल दी।



मनोरमा जैन पाखी


 



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