लॉक डाउन में देखो पत्नियों का क्या हाल है?
रसोईघर में खड़े -खड़े , उनके पैर बेहाल हैं।
बालकों और पति को तो मिल गईं हैं छुट्टियां,
लेकिन उस बेचारी का हाल बदहाल है।
सिंक में पड़े बर्तन भी उसी का मुंह ताकते हैं,
राह देखते हैं सभी, क्या कटोरी क्या थाल है?
रसोई घर में बीतने लगा है अस्सी प्रतिशत समय,
बंद हुए पार्लर, चेहरे को यही मलाल है।
चोटी गूँथने का समय कहाँ उसके पास अब,
रेशमी ज़ुल्फ़ बनीं , अनसुलझे बाल है।
उसकी सूरत देखकर लगने लगा है यही,
आईने को देखे हुए हुआ जैसे साल है।
बाहर से माना बहुत शांत दिख रही है वो,
किन्तु हृदय में उसके, उठ रहा भूचाल है।
पुराने वस्त्रों में समय कट रहा है साथियों,
फैशन क्वीन मानो , अब हो चुकी कंगाल है।
कामवाली बाई सपने में ही दर्शन देती है,
यथार्थ जीवन में मिलना हुआ मुहाल है।
शॉपिंग मॉल, हॉल,सब बंद हो गए हैं हाय,
कैसा अजीबोगरीब आया यह साल है।
गोरे होने के नुस्खे सारे मस्तिष्क से निकल गए,
स्मृति में अब तो बस आटा, तेल, दाल है।
प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित
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