फिर मिलेगें- अंकिता

 सदियां बीते वह बरसों बाद मुलाकात आई है प्रियतमा  राधा ने अपने प्रियतम की बांह थामे हुए बाँसुरी के धुन बाबरी  आलिंगन करने कोशिश की,परन्तु प्रियतम कान्हा ने अपने  बढतें  कदमों के पदचाप को मोड़ लिया, तपती अग्नि की भलिभांति हृदय प्रेम लालिमा से ओतप्रोत की पीर मे दो हृदय के प्रेमी युगल की परीक्षा की घडी थी ,प्रियतमा यूं ही उनसे कुछ कहने को तरस रही थी।
आंखें मींचे प्रियतम  कान्हा नीचे की ओर  देखकर विचलित भावावेश थे  एक परछाई नजर आई वो थी,, हद ,सीमा की प्रेम मर्माहत र्मयादा की परछाई।


बेशक मोहब्बत में लकीरें नहीं होती ,पर दहृदय  के जज्बात एहसास में एक हद की काबू मनवश ,आ जाती है जिसकी उलाहना ना चाहते हुए भी तन -मन करना चाहता है  परंतु परंपरागत जिनकी चाहत प्रेम रूहानी,आत्मीक और आस्तिक होती है वह अपने मन के एहसास  पर कब्जे कर लेते हैं कान्हा ने भी ऐसा ही किया और यूं ही शांत होकर प्रियतम अपने प्रियतमा राधा को समझा एक प्यार की मीठी बाँसुरी बजा मिलनरंग को अधुरेपन मे विसर्जन कर सच्चा प्रेम स्तभं बना देते है कहते है हे राधे  मेरी प्रियतमा,, फिर अवश्य मिलेंगे,,मानव के प्रेम-संवाद मानवीय संवेदनाओं मे 
पदचिन्हों मे कदमों को अग्रसर हो राधे से कान्हा क्षणभंगुर हो गये ।



अंकिता सिन्हा कवयित्री जमशेदपुर झारखंड


 



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