प्रकृति -कामिनी


प्रकृति जब करवट लेती भूचाल आता है

धरती डोलती है और हो कमाल जाता है

मानव जब जब प्रकृति से छेड़छाड़ करे

तब तब धरती पे काल, अकाल आता है

 

सूर्य ,चाँद समय से निकलता है

प्रकृति के नियम से चलता है

मानव मर्यादाये क्यो है तोड़ता

जिंदगी की राह मे फिसलता है

 

सागर अपनी सीमाओं में रहता है

ज्वार, भाटाओ को भी सहता है

नदिया निर्मल सदा बहती रहती

घाटो पे सदा मेला लगा रहता है

 

अभी  पतझड़ का मौसम है नही घबराना है

फिर बसंत आयेगा दिल मे अरमान जगाना है

फिर चिड़िया चहेकेगी हमको बाग है सजाना 

जन जन के चहरे पर हमको मुस्कान लाना है

 

कामिनी गोलवरकर , ग्‍वालियर

 



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