प्रकृति की पुकार-आशा

हे ईश्वर ,
तुमने दी सुंदर सलोनी धरती
 पहाड़, नदी ,झरनों की अविरल गति 
पर मानव, तूने अपने स्वार्थ हेतु
 मेरे सुन्दर, मनमोहक 
प्राकृतिक सौन्दर्य को ही बिगाड़ दिया ।
सुंदर पर्वतों को खण्ड - खण्ड कर दिया
चालीस मंजिला गगनचुंबी इमारत तान दी
एक नहीं असंख्य  तान दी । 
प्रकृति बेचारी क्या करें ?
कितना सहन करें ?
जो हरे भरे जंगल थे,
 उन जंगलों को उजाड़ दिया ।
ऊंचे -ऊंचे पेड़ों को काटकर उखाड़ दिया। बनाई सड़कें, आवास और फैक्ट्रियाँ
फैक्ट्रियों से निकलती हुई चिमनियाँ
 चिमनियों से निकलता हुआ धुँआ
सड़कों पर  धड़धड़ाते 
वाहनों से निकलता धुँआ। 
 बढ़ती आबादी फैलाया कचरा
 किया भूमि को दूषित 
कहीं ध्वनि प्रदूषण तो कहीं वायु प्रदूषण बेचारी धरती कैसे सांस ले ?
रो रो कर कहे ?
हे मानव कुछ तो रहम करो 
मेरा नहीं अपना तो ख्याल करो ।
अगर मैं प्रदूषण से दब गई 
तो कैसे सांस लोगे ?
कैसे जीवन जीओगे ?
कैसे स्वस्थ रहोगे ?
अपनी मां पर थोड़ा तो रहम करो 
मां स्वस्थ होगी 
तभी बेटों का जीवन स्वस्थ होगा।।


आशा जाकड़
975496949



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