जहाँ न हो काम शोक का
ऐसा हूँ मैं पेड़ अशोक का
सबका मंगल गाता हूँ
पात पात मुस्काता हूँ
ऊंचे गगन में बाह फैलाकर
सबकी खैर मनाता हूँ
ऐसा हूं मैं पेड़ अशोक का.........
सबसे पहले मुझे मनाते
द्वार द्वार पर मुझे लगाते
परिणय बेला हो या उत्सव
मंगल कलश में मुझे सजाते
ऐसा हूँ मैं पेड़ अशोक का.........
ईश्वर का वरदान हूँ मैं
ओषधिय गुणो की खान हूँ मैं
हर व्याधि का करू निवारण
प्रकृति का अभिमान हूँ
ऐसा हूँ मैं पेड़............
सीता की वाटिका बनकर
छत्र छाया में उनको रखकर
हर पल उनकी रक्षा करता
अपने को बड़भागी समझकर
ऐसा हूँ मैं पेड़............
घर घर में मुझे लगाओ
पर्यावरण का मान बढ़ाओ
हमको अपना प्राण समझकर
अपने कल को सफल बनाओ
ऐसा हूँ मैं पेड़............
फले फूले सबका परिवार
लेता हूँ सब बलाये वार
प्रतिपल दे आशीष सुहावन
"मधु"जीवन का इतना सार
||मधु टाक||
0 टिप्पणियाँ