प्रकृति की शक्ति-नूतन

काले आसमाँ को देख !
धरती कुछ कहना चाहती है ।
तारों की चमक से धरती की ,
शोभा बढ़ सी जाती है ।।
फिर भी आसमां अपनी ,
मजबूरियों को न कुछ कहता। 
प्रकृति शक्ति को सम्भाले रखता ।।
कभी काले,पीले ,नीले,लाल ,सफेद,,
सलेटी,केसरी तो कभी सुनहरे चमकीले।
हर दिन बहूरंगी साफा बिछाये रह्ते अकेले।।
फिर उन रंगों से न कोई करते हमजोली।
पहुँचते उन तक कुछ लोग ,
उनकी न कुछ होती बोली।।
नभ के रंग बहू रंग दिखते।
जो जीवन की ,
वास्तविकता को दर्शाते।।
कहता है गगन मेरी ऊँचाई ,
के कई रंग हैं देते इनकी लोग दुहाई।।
पर धरती रानी तेरे जैसा दूजा न कोई ।।
हे प्रिया तुम कितनी संतोषी सहनशक्ति।
तुझमे भी अपार है प्रकृति शक्ति।।
तेरे रंग एक ही हैं जो कर देती ,
वातावरण को शुद्ध,
जो कोई तेरी इज्जत करते शोभा बढ़ाते ,
उसको देती तुम स्वच्छ वायु ऑक्सीजन ,
जिन्हें होता प्यार अपने विजन से।
हरे भरे रखते तुझे अपने हाथों से।।
मैं तो बहुरंगी तू है एक रंग में रंगी।
मैं पुरुष कहलाता तू नारी कहलाती।
तेरी एक रंग ही हरियाली ।
सबके मन को भा जाती,
ला देती जीवन में उनकी खुशिहाली।।
तेरी और मेरी कैसी है ये प्रीत ,
प्रकृति शक्ति स्वरूप बन बैठी रीत।
यही है हमदोनों की रीत और प्रीत,
तू भू धरा मैं नभ भूधर मिल गाऊँ गीत।।


नूतन सिन्हा
गर्दनीबाग 
पटना बिहार।।



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