प्रकृति की शक्ति -सीमा

प्रकृति की शक्ति 
दिल में कब से यही शोर है मचा हुआ , 
यह मानव -जाति किस ओर जा रहा ? 
अपने ही हाथों खुद को बर्बाद कर रहा , 
गलती से खुद को खुदा समझ रहा । 
प्रकृति को दूषित करने पर तुला हुआ , 
शायद उस अदृश्य शक्ति को है़ भूला हुआ । 
पर जब भी मानव संतुलन बिगाड़ता है़ , 
प्रकृति किसी न किसी रूप में सुधार लेती है़ । 
हम उसका विनाश करते हैं जब भी , 
तो वो भी हमारी जान लेती है़ । 
पशुओं के साथ पशु मत बनो , 
खाने के लिए अन्न-फल-सब्जियाँ हैं , 
उनसे ही अपना पोषण कर लो । 
जीने दो सबको और खुद भी जियो , 
कुदरत के हर संकेत को अब तो  समझो । 
मानव हो मानवता के राह पर ही चलो , 
गलतियों से सीखो,  जिंदगी हँस कर जी लो ।
सीमा रानी मिश्रा, हिसार हरियाणा



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