प्रकृति की शक्ति-स्मिता

 


ये काल का चक्र है 
भेद रहा
  हर क्रियाओं को 
ख़ामोशी से 
अनवरत चल रहा 
मूर्ख प्राणी 
खेल रहा 
प्रकृति से  
साँप सीढ़ी का खेल 
डस के उसी साँप ने 
 ला दिया धरती पर 
सताया था प्रकृति को 
काटे पेड़ 
सुखायी नदियाँ 
फैलाया जहर 
हवाओं में 
बनाया ग्रास 
मूक जीवों को  
बन रहा अनजान 
कल तक हमने 
बाँधा मुट्ठी में  
काल को 
आज उसी ने 
हमें बाँध दिया 
इसके हाथों हमारा 
जीवन बदल गया 
ठहरी रात ठहरे कदम 
बादलों की घटाओं
  सा कुछ छा गया 


स्मिता धिरासरिया


 



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