प्रीति की पड़ोसन

विधा लघुकथा


शिखा  इंदौर शहर में अपने पति के साथ आकर कॉलोनी में नई शिफ्ट हुई थी ।अभी उसे आए हुए मात्र दो दिन भी व्यतीत  नहीं हुए थे,कि पड़ोस में रहने वाली दिव्या ने आकर कहा "बहन जी , मैं आपकी पड़ोसन हूं। किसी भी चीज की आवश्यकता पड़ेगी तो याद अवश्य कीजिएगा।" वह मुस्कुराती हुई चली गई। शिखा को ज्यादा घुलने मिलने की आदत नहीं थी। उसने झट से गेट बंद कर लिया। शिखा को यहां रहते-रहते 15 दिन बीत गए ।किन्तु वह एक बार भी दिव्या से मिलने नहीं गई। अभी तक दिव्या ही प्रतिदिन सुबह-शाम  उनका हाल-चाल जानने के लिए आ जाती। 
किन्तु शिखा के सर्द व्यवहार में कोई गर्माहट दिव्या के प्रति नहीं आयी।एक दिन दिव्या उनके घर के आगे से  निकल रही थी। तो उसे गैस की तेज दुर्गंध शिखा के घर से आती हुई अनुभव हुई। उसने जल्दी से गेट खटखटाया।गेट की तेज आवाज सुनकर गहरी नींद से शिखा जागी ।गेट खोला तो दिव्या दौड़ी हुई तुरंत अंदर आयी। और सीधी शिखा की रसोई में गयी और गैस रेगुलेटर से बंद की।घर की सारी खिड़की खोलीं।दिव्या की यह हड़बड़ाहट देखकर शिखा सारा माजरा समझ गयी। यदि आज उनकी यह पड़ोसन अपना पड़ोसी धर्म नहीं निभाती तो कोई भी दुर्घटना हो सकती थी।


प्रीति चौधरी "मनोरमा"
 जनपद बुलंदशहर
 उत्तर प्रदेश 


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