प्रेम ऐसा ही होता-संजय वर्मा

एक दिन आपका के तहत


धड़कन की चाल 
बढ़ सी जाती जाने क्यों 
जब तुम सामने से गुजरती 
आँखों में अजीब सा चुम्बकिय प्रभाव 
छा सा जाता 
शब्दों को लग जाता कर्प्यू 
देह की आकर्षणता 
या प्रेम का सम्मोहन 
कल्पनाएं श्रृंगारित 
आइना हो जाता जीवित 
राह निहारते बिना थके नैन 
पहरेदार बने इंतजार के 
प्रेम  के लहजेदार शब्द 
लगे यू जैसे वर्क लगा हो मिठाई में 
संदेशों की घंटियां 
घोल रही कानों में मिश्रिया 
इंतजार में नाराजगी 
वृक्षों को गवाह 
तपती धूप ,बरसता पानी
फूलों की खुशबू 
लुका छुपी का खेल 
होता है प्रेम  में 
विरहता में प्रेम छूटता 
रेलगाड़ी की तरह 
बीती यादों के सिग्नल तो 
अपनी जगह ठीक है 
उम्र की रेलगाड़ी
अब किसी स्टेशन पर रूकती नहीं 
प्रेम का स्टेशन 
उम्र को मुंह चिढ़ा रहा 
जब उम्र थी तब बैठे नहीं गाड़ी में 
आखरी डब्बे का गार्ड 
दिखा रहा झंडी



संजय वर्मा 'दॄष्टि '


125 शहीद भगतसिंग मार्ग 


मनावर (धार ) मप्र 


9893070756


 





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