प्रिया-किरण बाला

प्रिया इस दुनिया में नहीं रही... यह खबर सुनते ही कुछ पल के लिये मानो मैं जड़वत् हो गई |अभी परसों ही तो उसके घर पर मिलकर आई थी | एकदम पीली पड़ चुकी थी,बुखार टाईफाइड का रूप धर चुका था | मेरे साथ इंदु और नीरू भी थे , पिछले एक महीने से विद्यालय में भी नहीं आ रही थी |
प्रिया हमारे विद्यालय में हिन्दी की शिक्षिका थी |एकदम शांत सरल स्वभाव  चुप-चुप सी रहने वाली,एक विशेष बात जो उसे सबसे अलग बनाती वो ये थी कि हमेशा किसी न किसी रचनाकार की पुस्तक उसके साथ होती थी | साहित्य के प्रति उसकी रूचि बेमिसाल थी | एक नीरू ही तो थी जिसे वो दिल की बात सहजता से कर पाती थी |
जब हमें पता चला कि उसका बुखार सही नहीं हो रहा तो हमने उसके घर जाने का निर्णय लिया | प्रिया अपनी माँ और दो बहनों के साथ किराए के मकान में रह रही थी | बहनों में वो सबसे छोटी थी.उस वक्त उसकी माँ के अतिरिक्त घर पर कोई नहीं था | उसकी बहनें अभी अपने अपने काम से लौटी नहीं थी. प्रिया की शारीरिक अवस्था को देखकर अनायास ही आँखें भर आई |उसने बड़ी मुश्किल से उठने की कोशिश की किंतु उठ नहीं पाई |हमें देखकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे |


(कितना अजीब सा घर है, कहीं कोई रोशनदान या खिड़की तक नहीं, हवा भी कैसे आर-पार होती होगी !मकान पर सरसरी निगाह डालते हुए मैंने अपने आपसे कहा ) उसके कमरे में एक पलंग, उसके साथ मेज पर रखी किताबें और उन पर पडी धूल साफ बयाँ कर रही थी कि घर की सफाई करने की किसी के पास फुर्सत कहाँ थी ?
आँटी, आप इसका बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखते हो... क्या हालत हो गई है इसकी ! अगर आप से ख्याल नहीं रखा जाता तो मेरे पास रहने के लिए भेज दो| 
मैंने आपको पहले भी कई बार कहा है , मैं इसे अपने साथ बड़े प्यार से रखूंगी|आपने अपनी तीनों लड़कियो का जीवन खराब कर रखा है| अगर बड़ी बेटी की शादी नहीं हो रही तो कम से कम छोटी की तो कर दो |  प्रिया की उम्र भी अब पैंतीस के पार जा चुकी है... (नीरु किसी सुपर फास्ट रेल की तरह बोले जा रही थी).
अच्छा ये बताओ,आज सुबह से आपने इसे क्या क्या खिलाया ? कुछ खाती भी तो नहीं, दलिया बनाया था वो भी छोड़ दिया... पता नहीं किस्मत में क्या मनूसिहत लिखवा कर लाई है, जब देखो तब बीमार पड़ती रहती है (माँ ने दुखी मन से कहा) 
 आँटी, आप इसे मनहूस कह रहे हो ! कितनी होनहार और होशियार बेटी है आपकी,ऐसा कौन सा काम है जो इसे न आता हो ...आज के जमाने में ऐसी गुणी लड़की भला कहाँ देखने को मिलती है ? आपको शर्म आनी चाहिए ऐसी बातें कहते हुए. आपने घर को जेल बना रखा है... किसी को कहीं बाहर जाने नहीं देती | अकेले नहीं तो तीनों बहनों को साथ में भेज दिया करो बाज़ार जाएंगी ,थोड़ा घूमेंगी  फिरेंगी दुनियादारी का पता चलेगा | आप मेरे साथ भी भेज सकती हैं |मुझे उस वक़्त नीरू की बातें अच्छी नहीं लग रही थी, उसे इस तरह प्रिया की माँ से बातें नहीं करनी चाहिए थी पर उसने भी कुछ गलत नहीं कहा था |मैं माँ के चेहरे पर उस वक्त उठे भाव को पढ़ने की कोशिश कर रही थी... ऐसा लग रहा था कि उन्हें नीरू का घर आना अच्छा नहीं लगा |
बेटा, जमाना खराब है,डर लगता है... अब इनके पिता तो कई बरस पहले हमें छोड़ कर चले गए | कल को कोई ऊँच-नीच हो गई तो कौन देखने वाला है ?  मैं ही जानती  हूँ कि कैसे इनको पढाया है ?
आपके घर के सामने पार्क है, कम से कम वहाँ तो ले जा सकते हो,जाड़े के दिनों में थोड़ी बहुत धूप तो चाहिए न | इसे बाहर ले जाओ, जल्दी ही ठीक हो जाएगी (नीरू ने समझाने के लहजे से कहा).हम प्रिया को जैसे ही तसल्ली देकर चलने लगे तो उसने नीरू का हाथ कस कर पकड़ लिया मानो कहना चाहती हो कि अभी मत जाओ पर उसकी माँ के उपेक्षित व्यवहार से हम ज्यादा देर रूकना नहीं चाहते थे |भारी मन से हम वहाँ से वापस लौट आए |अगले दिन कुछ और लोग उससे मिलने गए तो उसकी माँ ने दरवाजा नहीं खोला |
आज जब प्रिया हमारे बीच नहीं है किंतु उसकी मौत एक सवालिया निशान छोड़ जाती है....क्या प्रिया की मौत स्वाभाविक थी ?उसने आत्महत्या की या फिर उसे मार दिया गया? उससे आखिरी बार मिलने पर जो भाव मैंने महसूस किये वो दर्शाते हैं कि उसने जीने की चाह छोड़ दी थी | वो जल्द ही इस समाज से दूर चले जाना चाहती थी ,ये आत्महत्या नहीं तो और क्या है ? या फिर उसका हत्यारा ये समाज ,उसकी रूढिवादी सोच, नारी असुरक्षा का भय जो उसे अंदर ही अंदर दीमक की तरह कमजोर कर रहा था | कारण जो भी रहा हो पर ये घटना हमें सोचने पर मज़बूर करती है कि आज भी समाज में नारी समानता के दावे कितनी  हद तक खोखले हैं !


                ----©किरण बाला 
                       (चण्डीगढ़)



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