कहानी
रितू और बसंत की मित्रता उस बीस किलोमीटर की दूरी को तय कर दोनों के परिवार तक में एक मिसाल बन गई थी।
दोनों ने साथ ही पढ़ाई पूरी की और मेडिकल कॉलेज में भी एक साथ ही प्रैक्टिस कर रहे थे।
उन दोनों की यह मित्रता केवल मित्रता थी या उससे कहीं ऊपर, किसी की समझ में नहीं आया। लोग हजार ! तो बातें भी हजार !!
लेकिन ना तो बसंत में कभी उन छिछोरों और प्यार ही में मगन सड़क छाप मजनूओं जैसी कोई बात देखी ! एक बात थी कि उसके व्यवहार में सभ्यता के साथ शालिनता छलकती थी।
उधर रितु भी स्वयं को जागरूक समझने वाली आधुनिकता की अंधी मॉडल लड़कियों जैसी नहीं थी उसमें भी यदि कोई बात थी तो वह यह कि बिना मेकअप बिना भड़काऊ बेहूदे स्कीन टाइट कपड़े और बड़े हुए नाखूनों से दूर सुंदर घने और लंबे बालों को खुला छोड़ने की बजाय लंबी चोटी बनाएं साधारण रहन-सहन में विश्वास रखने वाली थी ।
अब भला आज के आधुनिक लोग कैसे ना कंफ्यूज हो!?
लेकिन अपनी प्रैक्टिस के बीच कब दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे उन्हें स्वयं पता न था बस इतना था कि दोनों एक दूसरे की अब अधिक परवाह करने लगे थे सालों से एक दूसरे को जानते वे एक दूसरे की खूबी और कमी पर ना कभी रूठे ना ही किसी को मनाने की जरूरत ही पड़ी।
दोनों ही अपने भविष्य के प्रति सजग थे। यदि कुछ अंतर था तो इतना कि बसंत एक छोटे गांव के किसान परिवार से था तो रितु शहर के सरकारी विभाग में कार्यरत थोड़े से संपन्न परिवार से , दोनों ही परिवार में एक समानता थी कि रितु अपने बड़े भाई भाभी के द्वारा किए गए माता पिता पर दुर्व्यवहार से दुखी थी तो बसंत अपनी इकलौती बहन जो कि अपने भाई के भविष्य के लिए इंटरमीडिएट से ज्यादा नहीं पढ़ सकी थी उसके विवाह के लिए चिंतित था। किसान पिता ने अपनी सारी कमाई जमा पूंजी और खेतों को गिरवी रख बसंत को मेडिकल की शिक्षा के लिए उसे योग्य बनाया था।
ताकि उसका बेटा एक सफल डॉक्टर बन जीविकोपार्जन के साथ रोगियों की सेवा भी कर सके।
और आज वह शुभ दिन भी आ गया जब रितु और बसंत एक सफल डॉक्टर बनकर मेडिकल कॉलेज से निकले । ऐसे में दोनों के रास्ते अलग तो होने ही थे।
वसंत जहां गांव से बीस किलोमीटर दूर शहर आया करता था वही ऋतु का मन भी बसंत के उस दूरी को तय करने की प्रतीक्षा में रहा करता था लेकिन अब किसको किसकी प्रतीक्षा !?
क्योंकि बसंत जुट गया था पिता की गिरवी रखी पैदावार खेतों को छुड़ाने और बहन की शादी की जिम्मेदारी से अम्मा बाबूजी को मुक्त करने में , उधर रितु सहारा दे रही थी भाई भाभी द्वारा पीड़ित माता-पिता को , बावजूद इसके दोनों के मन में कहीं एक कसक और टीस भी थी और एक दूसरे से बातें न कर पाने अथवा ना मिल पाने का एक खालीपन था उसे कहने को या तो उनके पास शब्द नहीं थे या वे संकुचित थे ऋतु के पिता भी सेवानिवृत्त हो चुके थे और एकमात्र बेटी ही उनका सहारा दिखाई दे रही थी परंतु फिर भी वह अच्छे घर वर की तलाश में कुछ रिश्तेदारों से अथवा विभाग के सहकर्मियों से संपर्क बनाए हुए थे संयोग से एक दिन बसंत ने शहर के बड़े बाजार में रितु को माता-पिता के साथ देखा , दोनों का एक दूसरे पर नजर पड़ना क्या था कि चेहरे ऐसे खिल गए मानों सूर्य की सुबह-वाली ऊष्मा पाकर सारे फूल खिल जाते हैं औपचारिक बातों के बाद ही रितु ने जाते-जाते एक प्रश्न क्या पूछा थोड़ी देर के लिए वसंत निरुत्तर हो गया , रितु के माता-पिता भी बेटी की तरफ अव्वाक खड़े देख रहे थे
" बसंत ! क्या तुम मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर सकते हो ? "
बसंत को निरुत्तर देख रितु ने कहा , क्या हुआ बसंत ! मेरे माता-पिता मेरे विवाह के लिए चिंतित हैं !!
यह कहते उसने अपने परिवार का परिचय दिया और बहू बेटों द्वारा माता-पिता की परेशानी भी बताइ
वसंत के मन में प्रसन्नता तो थी लेकिन मुख मंडल पर चिंता की लकीरें खींच आईं थी प्रत्युत्तर में उसका भी एक प्रश्न ही था ।
रितु ! मैं किसान परिवार से और ग्रामीण अंचल का हूं क्या तुम निर्वहन कर पाओगी ?
निर्वहन का प्रश्न तो वहां उठता हैं बसंत ! जहां एक दूसरे के विचारों में सामंजस्य ना हो !! मैंने बेटे बहू की प्रताड़ना से माता-पिता को परेशान और दुखी देखा है सो पुनः अपने सास-ससुर के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करने का तो मैं साहस भी नहीं कर पाऊंगी क्योंकि कांटे की दुखद कसक को जो स्वयं सह चुका होता है वह दूसरों के लिए कांटा बनने से पहले कम से कम एक बार तो अवश्य सोचता ही है और रही बात तुम्हारी तो मैं इतने वर्ष तुम्हारे साथ रहकर इतना तो अवश्य समझ गई कि तुम उनमें से तो नहीं हो जो बहन बेटी बहू और पत्नी का यथोचित सम्मान करना ना जानते हो ।
रितु के माता-पिता जो अब तक अवाक मुंह फाड़े एक दूसरे को देख रहे थे उम्र के तजुर्बे ने उन्हें सब समझा दिया सो उन्होंने रितु का हाथ बसंत के हाथों में ऐसे सौंप दिया जैसे किसी विश्वसनीय को कोई अपनी अमूल्य धरोहर सौंप देता है और अब चारों के मन मस्तिष्क पर केवल प्रश्न के उत्तर और उत्तर के प्रत्युत्तर में एक ही शब्द था क्या प्यार इसी को कहते हैं ऐसे ही होते हैं प्रियतम के प्रिय और प्रिया के प्रियतम !!??
संतोष शर्मा शान
हाथरस
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