पृथ्‍वी दिवस पर रामकुमार का रामबाण

दमकती धरा को, हिलाकर चले हैं।
सियासत बिना पग,जमाकर चले हैं।।
 
नहीं बैर रखती, धरातल किसी से। 
उसे रोज शोषित, कराकर चले हैं।। 


सँभलते नहीं जो, गिरे मुंह औंधे। 
उन्हें सीख देकर, उठाकर चले हैं।। 


सने  धूल  पत्ते,  हवा  खौफ  खाती।
प्रदूषण सबक सब,सिखाकर चले हैं।।


शिविर जो लगे थे, पुराने हुए सब।
बिना बाड़ पौधे, लगाकर चले हैं।।


मिला ही न पानी,पनपते भला क्या।
समारोह  वन  में,  मनाकर चले  हैं।।


लगा पेड़ घर-घर, बना आज नारा।
लगाते कहीं जल, बहाकर चले हैं।।


अकारण न काटें,  हरे  पेड़ प्यारे।
हवा पेड़ जीवन, लुटाकर चले हैं।।


सदाताप सहता, धरातल हमारा।
कटे पेड़ कारण ,बताकर चले हैं ।।


न पानी यहाँ पर,कुँआ पाट खाली।
सतह गर्म  होता,  पढ़ाकर चले हैं।।


डॉ रामकुमार चतुर्वेदी
सिवनी मध्‍यप्रदेश



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