पुस्‍तक दोहे-भरत नायक

पुस्‍तक दिवस पर विशेष


*अच्छी पुस्तक मित्र सम, करती हमसे बात।
देती जीने की कला, मिले ज्ञान-सौगात।।1।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पुस्तक अनुभव-सार है, देती है संदेश।
भावों का उद्घोष है, नाना विधि उपदेश।।2।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*सबसे प्रीति किताब को, कोई करे न भेद।
अपना लो तुम भी इसे, मन में रहे न खेद।।3।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*पुस्तक बाँटे ज्ञान को, देती सीख-महान।
होकर यह बेजान भी, भर देती है जान।।4।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पढ़ लो पुस्तक से सभी, मानवता का पाठ।
चिंतन के ही सार से, ज्ञानवान का ठाठ।।5।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पुस्तक वाचन से सदा, बनते हैं गुणवान।
यह हल है हर प्रश्न का, समझे इसे सुजान।।6।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*पुस्तक सोता अनवरत, बहे ज्ञान की धार।
चाहे जितने गुण गहो, घटे न यह भंडार।।7।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*बनकर माटी मूक है, लगे प्राण-प्रतिमान।
जीवित प्रतिभा को गढ़े, पुस्तक का अवदान।।8।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पावन पुस्तक को पढ़ो, ज्ञान-गहो भरपूर।
भटका दे जो ध्यान को, रहना उससे दूर।।9।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*धरती खुली किताब है, देता दिव भी ज्ञान।
होता "नायक" बोध से, परम ज्योति का भान।।10।।
(16गुरु,16लघु वर्ण, करभ दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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