पुस्‍तक एक पुरानी-ज्‍योति

पुस्‍तक दिवस विशेष


सुनो सुनाऊँ एक कहानी,
मैं हूँ पुस्तक एक पुरानी,
ज़िल्द है थोड़ी मेरी भारी ,
मैं इतिहास की हूँ अलमारी।
लिखी किसी ने आत्मकथा,
और किसी ने हृदय व्यथा।
योद्धाओं के युद्ध लिखें है,
प्रेम पत्र कुछ शुद्ध लिखें हैं।
दोहों के सँग सन्त कबीरा,
ले करताल खड़ी है मीरा।
गंग यमुन उत्थान हैं मुझमें,
भूमण्डल पहचान है मुझमें।
रखती हूँ सब साथ सम्भाले,
धनुष बाण, राणा के भाले।
रामायण और भगवत गीता,
राधा कृष्ण राम और सीता।
कितना सुंदर मेरा जीवन,
सबके संग रहती आजीवन।



ज्‍योति शर्मा जयपुर  राजस्‍थान


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