पुस्तक
मैं इतिहास के पन्नों में छिपी
कथाएं की मैं रचयिता हूँ।
मेरे हर शब्द , हर अंकों में
भविष्य का काला गर्भ छिपे।
मैं दिखाना हूँ तुझमें छिपे वीर,
जो डर के साये में जा है छिपे।
खोल दो तुम दीवारों को,
तोड़ दो सारे बंधन को।
हर शब्द को बना लो अपना तुम,
हर पुस्तक में बस राम छिपे।
अल्लाह, जीसस, मैं ही ओकांर,
मैं तुम्हारी आवाज़ हूँ।
पढ़ लो ओर बस मानों मुझे अपना,
मैं आने वाले कल का आगाज हूँ।
न दूर मुझसे होना तुम,
घिर जाओगे वरना अंधयारों में।
उजाला हूँ तेरी रूह का मैं,
इस काले गिरते संसार में।
न छोड़ना मेरा दामन तुम,
न तुमको कभी छोड़ूगी।
घुल जाऊँगी तेरे जीवन में,
संसार खुशियों को घोलूँगी।
स्वरचित,
अदिति सिंह भदौरिया।
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