पुस्‍तकों से बढ़कर -पाखी

पुस्‍तक दिवस विशेष
जीवन में एक बात हमेशा सत्य हुई। पुस्तकों से बढ़ कर सच्चा मित्र मुझे कोई नहीं मिला। जब -जब मानसिक तनाव हुआ,जब -जब मन व्यथित हुआ ,मुझे इन पुस्तकों ने सदैव सँभाला ,धैर्य बँधाया ,राह दिखाई।न कभी कोई आरोप लगाया ,न कोई इल़्जाम दिया ।न स्वार्थी बनी ,न मुझसे कुछ लिया।

 पुस्तकों की दुनियाँ में वापिस लौटने का विचार विगत कुछ समय से चल रहा था। कारण 2015 का वो टर्निंग पाइंट ,जिसने मुझे पुस्तकों से अलग किया।जिसने मुझे इंटरनेशनल अवार्डी बनाया ,मुझे उनका साथ छोड़ना पड़ा।और भटकते आ गयी इस धोखे फरेब स्वार्थ से परिपुर्ण आभासी दुनियाँ में। जहाँ सिर्फ स्वार्थ पूर्ण रिश्ते मिले,दोस्ती मित्रता के नाम पर चेहरे पर मुखौटे मिले ।अंतर में कुछ ,बाहर कुछ ..।
पर #कुछ ऐसे रिश्ते भी मिले जिन पर गर्व किया जा सकता है। अगर वापिस अपनी पुस्तकों की दुनिया में लौटी भी तो उन मुट्ठी भर लोगों के साथ संपर्क रहेगा। 


आज के दिवस हेतु कुछ मनोद्गार .....
पुस्तके ..
साथी बनी सदा सुमार्ग दिखाती।
सही गलत का भेद भी बताती।
पहिचानों स्व को हरदम कहती ।
मत खोलो मनभेद यही कहती।


ज्ञान ,सन्मार्ग देय सदैव रहा।
दंभ ,गर्व से बचो,यही तो कहा।
सत्य मार्ग गहो,न डरो कभी ।
स्वार्थी बन घात करना नहीं।


कोई बुरा कहे या अच्छा ,छोड़ो।
अपना लक्ष्य चुन मन को मोड़ो।
मत करो प्रतिकार गाली कोई दे।
रब बैठा ,न्याय करे ,देर भले हो ।


देखी जो दुनियाँ भ्रमित मन हुआ।
न जाने क्या देखा ,अनुभव हुआ ।
छल कपट मान झूठ से भरा जग।
टिक न पायेगी पीछै छूटा तेरा मग।


देख ,कितना बदल लिया तूने ।
सरलता खोकर क्या पाया तूने।
चल वापिस ये दुनियाँ नहीं तेरी।
यहाँ बचेगा वही करे जो मेरी मेरी।

पाखी 
23/04/2020


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